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________________ 372 नैषधीयचरिते कहीं दृश्य बनी हुई आपकी वाणी उस सरस्वती-नामक नदी को जीतना चाह रही है जिसमें जल कहीं तो प्रकट हुआ रहता है और कहीं अप्रकट" // 4 // टिप्पणी-विद्याधर और मल्लिनाथ यहाँ उत्प्रेक्षा मान रहे हैं। उसका वाचक शब्द तो यहाँ कोई नहीं है, प्रतीयमाना ही माननी पड़ेगी, किन्तु हमारे विचार से जीतना, टकर लेना आदि लाक्षणिक प्रयोग दण्डी ने सादृश्य-परक मान रखे. हैं। तदनुसार हम यहाँ उपमा क्यों न माने। धर्म यद्यपि वाणी में और है. तथा सरस्वती नदी में और है, किन्तु उनमें बिम्ब-प्रतिबिम्बभाव तो हो ही रहा है / दर्पणकार ने शाब्द, आर्थ दो प्रकार के समान धर्मों के अतिरिक्त तीसरे। बिम्बप्रतिबिम्बभावपरक समान धर्म को भी उपमा-प्रयोजक मान रखा है। 'सरस्वतीम्' 'सरस्वतीम्' में यमक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है // 4 // गिरः श्रुता एव तव श्रवःसुधाः श्लथा भवन्नाम्नि तु न श्रुतिस्पृहा / पिपासुता शान्तिमुपैति बारिजा न जातु दुग्धान्मधुनोऽधिकादपि // 5 // __अन्वयः-श्रवःसुधाः तव गिरः श्रुता एव, तु भवन्नाम्नि श्रुति-स्पृहा न श्लथा ( अभवत् ) / वारिजा पिपासुता दुग्धात्, मधुनः ( ताभ्याम् ) अधिकात् अपि न जातु शाम्यति / टोका-श्रवसोः श्रोत्रयोः सुधाः अमृतरूपाः ( स० तत्पु० ) तव गिरः वाण्य: वचनानीत्यर्थः श्रुताः आकणिताः एव तु किन्तु भवतः तव नाम्नि नामविषये (10 तत्पु० ) श्रुतेः श्रवणस्य स्पृहा इच्छा (10 तत्पु०) न इलया शिथिला, मन्दा शान्तेतियावत् अभवत्, त्वन्नामश्रवणेच्छा यथावत् तिष्ठत्येवेति भावः / वारिण: जायते इति तथोक्ता ( उपपद तत्पु० ) जलविषयिणीत्यर्थ। पिपासुता पातुमिच्छुता दुग्धात् क्षीरात्, मधुन: माक्षिकात् ततोऽप्यधिकात् अमृतात् अपि न जातु न कदापि शाम्यति शान्ता भवति / जलपानेच्छा जलेनैव प्रपूर्यते न तु दुग्धादिनेतिभावः, तस्मात् त्वया स्वं नाम प्रतिपादनीयम् / / 5 // ___ व्याकरण-श्रवस् श्रूयतेऽनेनेति श्रु + असि ( करणे ) / श्रुतिः श्रु+ क्तिन् ( भावे ) / श्लथा श्लथयतीति श्लथ् + अच् + ( कतरि) + टाप् / वारिजा वारिणि जायते इति वारि+जन् + ड ( कर्तरि )+ टाप् / पिपासुता पातुमिच्छुः पिपासुः तस्य भाव इति Vपा+ सन् + उ (कतरि) + तल+ टाप् / दुग्धम् Vदुह् + क्त (भावे ) /
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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