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________________ अष्टमः सर्गः 367 सफल हो सकेगा अन्यथा नहीं। ध्यान रहे कि कवि प्रत्येक सगं के अन्त की तरह यहाँ भी अपनी 'आनन्द' शब्द की छाप लगा कर समाप्त कर रहा है। 'मग्नमग्निम्, 'दयो' दयं, 'मने' 'मनो' में छेक, अन्यत्र वृत्यनुप्रास है। छन्द कवि ने यहां वसन्ततिलका रखा है, जिसका लक्षण यह है-'उक्ता वसन्ततिलका तभजा ज-गौ गः / अर्थात् इसमें चौदह अक्षर इस तरह रखते हैं तगण, भनण, जगण, जगण, गुरु गुरु / श्रीहर्ष कविराजराजिमुकुटालंकारहीरः सुतं श्रीहीरः सुषुवे जितेन्द्रियचयं मामल्लदेवी च यम् / तस्यागादयमष्टमः कविकुलादृष्टाध्वपान्थे महा काव्ये चारुणि नैषधीयचरिते स! निसर्गोज्वलः // 109 / / अन्वयः- कविराज "यम् ( पूर्ववत् ) तस्य कविकुलादृष्टाध्वपान्थे चारुणि नैषधीयचरिते महाकाव्ये अयम् निसर्गाज्वलः अष्टमः सर्गः अगात् / . टीका-कविराज यम् (पूर्वबत् ), तस्य कवीनां कालिदासप्रभृतिमहाकवीनाम् कुलेन गणेन (10 तत्पु० ) अदृष्टः अनवलोकित अनाश्रितः इत्यर्थः ( तृ० तत्पु० ) यः अध्वा काव्यमार्गः ( कर्मधा० ) नवीनकलावादिसरणिरित्यर्थः तस्य पान्थे पथिके नवीनालङ्कृतशैलीमाश्रित्य लिखिते इत्यर्थः नैषधीयचरिते महाकाव्ये निसर्गोज्ज्वलः अयम् अष्टमः सर्ग अगात् समाप्तः / इति श्रीमोहनदेव-पन्त-शास्त्रिप्रणीतायां 'छात्र-तोषिणी' टीकायाम् अष्टमः सर्गः। __ अनुवाद-जिसको जन्मादि ( पूर्ववत् ) उसके (पूर्व) कविकुल द्वारा अनदेखे मार्ग के पथिक सुन्दर 'नैषधीयचरित' महाकाव्य का निसर्गतः उज्ज्वल आठवाँ सर्ग समाप्त हुआ। नैषधीय चरित के आठवें सर्ग का अनुवाद और टिप्पणी समाप्त /
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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