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________________ षष्ठः सर्गः सोचकर निश्चय हो गया कि हार हृदय में था, इसलिए समीप होने से वे हृदय के भीतर ही चले गये। भावार्थ यह निकला कि नल को प्रतिबिम्ब-रूप में देखकर वह उन्हें हृदय में स्थान दे बैठी और उनके वियोग में अकुलाने लगी। विद्याधर ने युवति को चिन्ता होने से यहां भावोदयालंकार माना है। शब्दालंकार वृत्त्यनुप्रास है। तच्छायसौन्दर्यनिपीतधैर्याः प्रत्येकमालिङ्गदम् रतीशः। तिप्रतिद्वन्द्वितमासु नूनं नामूषु निर्णोतरतिः कथंचित् // 31 // अन्वयः-रतीशः तच्छाय""धैर्याः अमूः प्रत्येकम् आलिङ्गत्, रति "मासु अमूषु ( सः) कथञ्चित् निर्णीतरतिः न अभूत् नूनम् / / ____टीका--रत्याः ईशः पतिः काम इत्यर्थः ( 10 तत्पु 0 ) तस्य नलस्य छाया हार-मणिकुट्रिमादिषु पतितं प्रतिबिम्बम् (10 तत्पु० ) तस्य सौन्दर्येण लावण्येन निपीतम् अपनीतमित्यर्थः ( ष. तत्पु० ) धैर्यम् धृतिः ( कर्मधा० ) यासां तथाभूताः ( ब ब्री० ) अमूः अन्तपुरसुन्दरीः प्रत्येकम् एकाम् एकामिति ( अव्ययी भाव ) पृथक-पृथगित्यर्थ: आलिङ्गत आश्लिष्यत् / रत्याः प्रतिद्वन्द्वितमासु अतिशयेन प्रतिस्पधिनीषु रतिसदृशीष्वित्यर्थः अमूषु एतासु स काम: कन्चित् केनापि प्रकारेण निर्णीता विनिश्चिता रतिः स्वपत्नी ( कमंधा०) येन तथाभूतः ( ब० वी० ) न अभूत् जातः नूनमित्युत्प्रेक्षायाम् / तत्र सर्वा अपि युवतयो रतितुल्या आसन् इति भावः // 31 // ___व्याकरण---तच्छायम् 'विभाषा सेना०' ( 2 / 4 / 26 ) से विकल्प नपुंसक लिङ्ग / सौन्दर्यम् सुन्दर्या भाव इति सुन्दरी + ध्यन पुंवद्भाव / प्रतिद्वन्द्वितमासु द्वे द्वे इति द्वन्द्वम् प्रतिगतं द्वन्द्वम् प्रतिद्वन्द्वम् तदासामस्तीति प्रतिद्वन्द्विन्यः अतिशयेन प्रतिद्वन्द्विन्य इति प्रतिद्वन्द्विनी + तरप् , पुंवद्भाव + टाप् / . __ अनुवाद-कामदेव उन ( नल ) के प्रतिबिम्ब के सौन्दर्य ( को देखने ) से धैर्य खोये हुए उन युवतियों में से प्रत्येक का आलिंगन कर बैठा मानो वह किसी भी तरह निश्चय न कर सका हो कि रति से होड़ करने वाली उन ( युवतियों) में ( असली ) रति कौन है / / 31 / / टिप्पणो--अन्तःपुर की सभी युवतियां रति-जैसी सुन्दर थीं। कामदेव उनमें से अपनी पत्नी रति को पहचान ही न सका कि कौन है, इसलिए यह सोचकर कि इनमें से कोई न कोई रति होगी ही, सभी का आलिंगन कर
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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