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________________ नैषधीयचरिते करके ) कुचों पर लगे कुंकुम से रंग दिए गये-( इस प्रकार ) वे ( युवतियाँ) उनके साथ संभोग-जैसा कर बैठी // 29 // टिप्पणी--यहाँ एक ही कारक ( नल ) के साथ गेद से आहनन, करजों से भेदन और कुंकुम से अभ्यञ्जन-अनेक क्रियाओं का सम्बन्ध होने से कारकदीपक है। संभुक्त-कल्प' में सादृश्याभिधान होने से उपमा है / शब्दालंकार वृत्त्यनुप्रास है। ताभि:-इससे यह सूचित होता है कि उन सुन्दरियों ने ही जान-बूझकर राजा के साथ संभोग किया, राजा नल ने नहीं। वे तो धर्मात्मा थे / ऐसा क्यों करते ? तटस्थ ही रहे। छायामयः प्रैक्षि कयापि हारे निजे स गच्छन्नथ नेक्ष्यमाणः / तच्चिन्तयान्तनिरचायि चारु स्वस्यैव तन्व्या हृदयं प्रविष्टः / / 30 / / अन्वयः-कया अपि तन्व्या निजे हारे छायामयः स प्रैक्षि; अथ गच्छन् न ईक्ष्यमाणः ( सन् ) तच्चिन्तया ( सः) स्वस्य एव हृदयम् प्रविष्टः' इति ( तया) अन्तः चारु निरचाथि / टोका-कया अपि कयाचित् तन्व्या कृशाङ्गया निजे स्वीये हारे मौक्तिकस्रजि छाया एवेति छायामय: प्रतिबिम्बरूपः स नलः प्रेक्षि प्रेक्षितः, कापि सुन्दरी स्वहारे नलस्य प्रतिबिम्बमालोकयदित्यर्थः,अथ अनन्तरम् गच्छन् तस्मात् स्थानात् अपसरन् ( नलः ) न ईक्ष्यमाणः हारे प्रतिबिम्बरूपेण न विलोक्यमानः सन् 'क्व गतोऽसौ, हारे न विलोक्यते' इति तस्य प्रतिबिम्बितनलस्य चिन्तया चिन्तनेन 'स नलः स्वस्य आत्मन ममेत्यर्थः एव हृदयम् अन्तःकरणम् प्रविष्टः गतः इति तया अन्तः स्वमनसि चारु सम्यक् यथास्यात्तथा स निरचायि निश्चितः / हारे न पश्यन्ती सा 'मम हृदये एवासौ प्रविष्ट' इति सुतरां निश्चितवतीति भावः // 30 // व्याकरण - छायामयः छाया + मयट ( स्वरूपाथें ) / प्रैक्षि प्र+Vईक्ष + लुङ् ( कर्मवाच्य ) / निरचायि निर् + चि + लुङ् ( कर्मवाच्य ) / __अनुवाद--किसी कृशाङ्गी ने उन (नल) को अपने हार में प्रतिबिम्बित हुआ देख लिया; बाद को ( वहाँ से उनके ) चल पड़ने पर देखने में न आते हुए उनके विषय में सोचने से उसने अच्छी तरह यह निश्चय कर लिया कि वे मेरे ही हृदय के भीतर प्रविष्ट हो गये हैं // 30 // टिप्पणी-युवती का हार हृदय में था। उसमें नल के प्रतिबिम्ब का अभाव देखकर वह चिन्ता में पड़ गई कि गये, तो कहाँ गये, अभी तो यहीं थे।
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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