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________________ 342 नैषधीयचरिते ( कर्मधा० ) तेषाम् नासासु नासिकासु नासापथेष्वित्यर्थः पथिकैः पान्थैः ( स० तत्पु० ) मद्भिः वायुभिः नि:श्वसितरित्यर्थः समम् सह प्रतस्थे प्रस्थितम् / सपत्नीम् आनेतुं पतिषु प्रस्थितेषु तेषां पत्न्यः अवसादे दीर्घ-दीर्घनिःश्वासान तत्यजुरिति भावः // 86 / / ____ व्याकरण-शौर्यम् शूरस्य भावः कर्म वेति शुर + ष्यन् / दुःस्थैः इसके लिए पीछे श्लोक 81 देखिए। सपत्नी समानः + पतिः यस्या इति नित्यं सपल्यादिषु' 4 / 1 / 35 से छीप, नकार और समान शब्द को स। दाराः इसके लिए पीछे श्लोक 60 देखिये। पथिकैः पन्थानं गच्छतीति पथिन् + कन् / प्रतस्थे प्र + /स्था + लिट् ( भाववाच्य ) / अनुवाद-तदनन्तर काम के शौर्यरूपी अग्नि के ताप से अस्वस्थ बने दिशाओं के ( इन्द्रादि ) देवताओं ने सौत से उत्पन्न हुए दुःख के कारण असह्य बने, निज पत्तियों के नासिका-मार्ग के पथिक रूप नि.श्वासों के साथ-साथ प्रस्थान किया / / 86 // टिप्पणी-दिक्पालों के दमयन्ती ब्याहने चल देने पर उनकी पत्नियों को बड़ा दुःख हुआ कि उनके पति उनके छिए सौत ला रहे हैं, अतः नैराश्य में वे लम्बी-लम्बी गर्म आहें भरने लगीं / पतियों के चल पड़ने के बाद दुःख में पत्नियों की आहे चलीं, किन्तु कवि ने दोनों का एक साथ चलना बताया है, अतः यहाँ कार्यकारण-पौर्वापर्यविपर्ययातिशयोक्ति है, जिसका 'समम्' शब्दवाच्य सहोक्ति के साथ संकर है। 'मरुद्भिः मरुद्भिः' में यमक के साथ पादगत अन्त्यानुप्रास का एकवाचकानुप्रवेश संकर और अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है ! ध्यान रहे कि पथिक लोग साथ-साथ ही जाया करते हैं किन्तु मरुतों के साथ तीक्ष्ण (प्रचण्ड) विशेषण देकर कवि यहाँ अपशकुन बता रहा है जिससे यह ध्वनि निकलती है कि देवताओं का काम नहीं बनेगा। मंद-सुगन्ध-शीतल वायु ही मांगलिक व शुभ शकुन होती है। अपास्तपाथेयसुधोपयोगैस्त्वच्चुम्बिनैव स्वमनोरथेन / क्षुधं च निर्वापयता तृषं च स्वादीयसाऽध्वा गमितः सुखं तैः / / 87 // अन्वयः-अपास्त...योगे: तैः क्षुधम् च तृषम् च निर्वापयता स्वादीयसा त्वच्चुम्बिना स्वमनोरथेन एव अध्वा सुखम् गमितः / __टीका-अपास्त: त्यक्तः पाथेयं पथि भोजनम्, शम्बलम् ( 'पाथेयं शंबलं
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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