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________________ अष्टमः सर्गः 323 रवैगुणास्फालभवैः स्मरस्य स्वर्णाथकर्णी वधिरावभूताम् / गुरोः शृणोतु स्मरमोहनिद्राप्रबोधदक्षाणि किमक्षराणि // 6 // अन्वयः-स्वर्णाथ-कर्णी स्मरस्य गुणास्फालनभवः रवैः बधिरौ अभूताम्; (स ) गुरोः स्मर' 'दक्षाणि अक्षराणि किम् शृणोतु ? टीका–स्वः स्वर्गस्य नाथः स्वामी इन्द्र इत्यर्थः ( सुप्सुपेति समासः ) तस्य कर्णौ श्रोत्रे (10 तत्पु० ) स्मरस्य कामस्य गुणस्य ज्यायाः यः आस्फालः घट्टनम् ( 10 तत्पु० ) तस्माद् भवतीति तथोक्तः ( उपपद तत्पु० ) रवैः शब्दः धनुष्टङ्कारैरिति यावत् वधिरौ श्रवणशक्तिरहितौ अभूताम् संजातो, अतएव स गुरोः बृहस्पतेः स्मरेण कामेन यो मोहः मूढता ( तृ० तत्पु० ) एव निद्रा स्वापः ( उपपद तत्पु० ) तस्याः सकाशात् यः प्रबोध: जागरणम् (पं० तत्पु० ) तस्मिन् दक्षाणि निपुणानि समर्थानीत्यर्थः अक्षराणि शब्दान् उपदेशवचनानीति यावत् किम् कथम् शृणोतु आकर्णयतु न किमपीति काकुः। कामधनुष्टंकारवधिरीभूतयोः इन्द्रकर्णयोः देवगुरोः वृहस्पतेः उपदेशवचनानि कथं नाम प्रवेशं लभन्तामिति भावः // 68 // व्याकरण-स्वर्णाथः स्वर् + नाथ न को ण ( 'पूर्वपदात्संज्ञायामगः)। आस्फालनात् आ + /स्फाल् + ल्युट ( भावे ) / भवै:/भू + अप् ( अपा. दाने ) रवै:/रु + अप् ( भावे ) / अनुवाद-"स्वर्गपति ( इन्द्र ) के कान कामदेव के धनुष की डोरी खीचने से उठी टंकार ध्वनियों द्वारा बहरे हुए पड़े हैं, काम-कृत मोह-निद्रा से जगाने में सक्षम गुरु ( वृहस्पति ) के वचन वह सुने तो कैसे सुने ?' // 68 // टिप्पणी-इन्द्र ही क्यों, कामपीड़ित किसी भी व्यक्ति के आगे गुरुजन के उपदेश कुछ भी प्रभाव नहीं डाल सकते हैं—काम का ऐसा ही मनोविज्ञान है / बाण ने भी कहा है-'गुरुवचनममलमपि सलिलमिव महदुपजनयति श्रवण-स्थितं शूलमभव्यस्य / ' 'उद्दामदपश्चि पृथुस्थगितश्रवणविवराश्वोपदिश्यमानमपि ते न शृण्वन्ति' / विद्याधर ने यहाँ अतिशयोक्ति कही है। सम्भवतः वे दो विभिन्न गुरुओं में अभेदाध्यवसाय मान रहे हों' अथवा बधिरत्व का असम्बन्ध होने पर भी सम्बन्ध मानते हों। हम बधिरत्व की कल्पना में यहाँ गम्योत्प्रेक्षा कहेंगे। मोह पर निद्रात्वारोप में रूपक है। 'क्षाणि' 'राणि' में पदान्तगत अन्त्यानुप्रास, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है।
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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