________________ अष्टमः सर्गः 'चरत् गच्छत् वर्तमानमित्यर्थः तेपाम् इन्द्रादीनाम् चित्तम् मनः ( कर्तृ ) रुचः कान्तेः चौरतरेण अतिशयेन चौरेण विरहकारणात् कान्त्यापहारकेणेत्यर्थः पञ्च इषवः वाणाः यस्य तेन ( ब० वी० ) कामेन लुण्ठितम् हृतम् धेयम् धृतिः एव वित्तं धनं ( उभयत्र कर्मधा० ) यस्य तथाभूतम् ( ब० वी० ) सत् खेदम् दुःखम् एति प्राप्नोति / वयःसन्धौ स्थितायाम् त्वयि आसक्ताः चत्वार एव दिक्पालाः धैर्यं विहाय कामपीडिताः सन्तीति भावः // 59 // __ व्याकरण-शैशवम् शिशोर्भाव इति शिशु + अण् / यौवन युवत्या भाव इति युवति + अञ् , पुंवद्भाव / शंशवयौवनोयम् शैशवयौवनयोः इदमिति शैशवयौवन + छ, छ को ईय। द्वराज्यम् द्वौ राजानौं यत्रेति द्विराजः ( समासान्त टच् ) तस्य भावः द्विराज + व्यञ् / ०भाजि/भज् + क्विप् ( कर्तरि ) सप्तमी / रुचः /रुच् + क्विप् ( भावे ) प० / चौरतरेण अतिशयेन चौर इति चौर + तरप्। ___ अनुवाद-शैशव और यौवन की द्विराजकता प्राप्त किये तुम्हारे प्रति चिरकाल से जा रहा उन ( दिक्पालों ) का मन कान्ति को पूर्णतः चुरा लेने वाले कामदेव द्वारा धैर्य-रूपी वन के ( भी ) लूट लिए जाने पर खिन्न हुआ पड़ा है" // 59 // टिप्पणी--दमयन्ती वयःसन्धि में ही थी कि इन्द्रादि देवता उस पर अनुरक्त हो गये। उन्हें काम सताने लगा। दमयन्ती के विरह से जहाँ उनकी सारी शारीरिक कान्ति जाती रही, वहाँ मानसिक धैर्य भी उनका खो गया था इस पर कवि द्विराजकता का अप्रस्तुत-विधान कर रहा है। शैशव और यौवन दो राजे बन गये, जिनके देशों की मध्यवर्ती सीमा में दमयन्ती रह रही है। सीमा में चोर डाकुओं का खतरा सदा बना ही रहता है इधर देखो तो देवताओं का मन दमयन्ती के पास सीमा में चला जाता है। कामदेव के रूप में पाँच वाणों वाले डाकू ने मन के पास जो धैर्य-रूप धन था, वह लूट लिया, लुटा हुआ मन बेचारा खिन्न हुआ बैठा है। शैशव और यौवन पर राज्यत्वारोप, पञ्चेषु पर चीरत्वारोप और धैर्य पर वित्तत्वारोप होने से रूपक है। खेद का कारण वित्त लुण्ठन बताने से काव्यलिङ्ग भी है / विद्याधर ने 'अन्योक्तिरलंकारः' कहा है, जो हमारी समझ में नहीं आ रहा है। 'चित्तं' 'वित्तम्' में पादान्तगत अन्त्यानुप्रास और अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है / 'चरचिरं' 'चौर' में च, र वर्णों की