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________________ 298 नैषधीयचरिते टिप्पणी-यहाँ कवि ने कल्पना की है कि तुम्हारा कामदेव से भी अधिक सुन्दर रूप बनाकर मानो ईश्वर ने जगत् पर कृपा की है, इस तरह उत्प्रेक्षा है, जिसका वाचक 'जाने' शब्द है / 'देहदाहम्' में छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास हैं / मही कृतार्था यदि मानवोऽसि जितं दिवा यद्यमरेषु कोऽपि / कुलं त्वयालंकृतमौरगं चेन्नाधोऽपि कस्योपरि नागलोकः // 44 // अन्वयः-यदि ( त्वम् ) मानवः असि ( तर्हि ) मही कृतार्था ( जाता)। यदि देवेषु कः अपि ( असि, तहि ) दिवा जितम्, चेत् त्वया औरगम् कुलम् अलङ्कृतम् ( तहि ) अधः अपि नागलोकः कस्य उपरि न ? ____टीका-यदि चेत् त्वम् मानवः मनुष्यः असि वर्तसे, तहि मही पृथ्वी कृतः अर्थ: प्रयोजनं यया तथाभूता ( ब० वी० ) कृतकृत्या धन्या इति यावत् त्वया अलङ्कृतत्वात् इत्यर्थः, यदि देवेषु अमरेषु कः अपि कश्चित् असि तहिं दिवा स्वर्गेण जितम् सर्वोत्कृष्ठेन भूतम् चेत् यदि त्वया औरगम् उरगसम्बन्धि कुलम् वंशः अलंकृतम् भूषितम् अर्थात् यदि त्वम् कश्चिन्नागोऽसि तर्हि अधः अधः स्थितोऽपि नागलोक: नागानां लोकः ( 10 तत्पु० ) कस्य लोकस्य उपरि ऊर्ध्वप्रदेशे न अस्ति त्वयालङ्कृतो नागलोकः सर्वोत्कृष्टो वर्तते इत्यर्थः // 44 / / व्याकरण-मानव: मनोरपत्यं पुमान् इति मनु + अण् / मही महीयते (पूजां लभते ) इति/मही + अच ( कर्तरि ) + ङीप् / देवः दिव्यतीति। दिव + अच् ( कर्तरि ) यास्क के अनुसार 'दीयनाद्वा, द्योतनाद्वा दिवि भवो वा'! औरगम् उरगाणामिदमिति उरग + अण् / उरगः उरसा ( वक्षसा) गच्छतीति उरस् + गम् + डः / नागाः न गच्छन्तीति न + गम् + डः = अगाः न अगाः इति नागाः / अनुवाद-“यदि तुम मानव हो, तो पृथिवी कृतकृत्य है, यदि तुम देवताओं में से कोई हो, तो धुलोक सर्वोत्कृष्ट है, यदि तुमने किसी नागवंश को अलंकृत किया है तो नीचे होता हुआ भी नागलोक किस लोक से ऊपर नहीं है ?" // 44 // टिप्पणी--विद्याघर यहाँ अतिशयोक्ति मान रहे हैं, क्योंकि यदि शब्द के बल से यहाँ असम्बन्ध में सम्बन्ध की संभावना की जा रही है। हमारे विचार से 'अधोऽपि' 'उपरि' में विरोधाभास है, जिसका परिहार उपरि का उत्कृष्ट.
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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