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________________ अष्टमः सर्गः कृत्वा दृशौ ते बहुवर्णचित्रे किं कृष्णसारस्य तयोर्मूगस्य / अदूरजाग्रद्विदरप्रणालीरेखामयच्छद्विधिरर्धचन्द्रम् // 38 // अन्वयः-विधिः ते दृशौ बहुवर्णचित्रे कृत्वा कृष्णसारस्य मृगस्य तयोः अदूरः रेखाम् अर्धचन्द्रम् अयच्छत् किम् ? टीका-विधिः विधाता ते तव दृशौ नयने बहवः अनेके ये वर्णाः कृष्ण. शुक्लरक्ताः ( कर्मधा० ) तैः चित्रे विविधवणे अथ च अद्भुते कृत्वा विधाय कृष्णः श्यामवर्णः सारः श्रेष्ठभागो यस्मिन् तथाभूतः कृष्णवर्णप्रायः इत्यर्थः तस्य मृगस्य हरिणविशेषस्य तयोः दृशोः अदूरे न दूरे ( नञ् तत्पु० ) समीपे इत्यर्थः जाग्रती स्फुरन्ती दृश्यमानेत्यर्थः ( स० तःपु० ) या विवरः स्फुटन् भिदेत्यर्थः ( 'विदरः स्फुटनं भिदा' इत्यमरः ) तद्रूपा प्रणाली जल-मार्गः ( कर्मधा० ) तस्याः रेखा लेखा (प० तत्पु० ) ताम् अर्धचन्द्रम् अर्धचन्द्राकाराम् गलहस्तिकाम् ( 'अर्धचन्द्रस्तु चन्द्रके, गलहस्ते बाणभेदेऽपि' इति विश्वः ) अयच्छत प्रादात् किम् ? त्वन्नयनसादृश्यं प्राप्तुमिच्छन्त्योः मृगदृशोः धाापराधं दृष्ट्वा दण्डरूप ब्रह्मा विदररेखामिषेण गलहस्तप्रदानद्वारा निस्सारितवानिवेति भावः // 38 // व्याकरण-विधि; विदधाति (निर्माति जगत् ) इति वि +धा + किः / कृष्णः-यास्कानुसार 'निकृष्टो वर्णः' इति / मृगः मृग्यते ( अन्विष्यते आखेटार्थम् ) इति किन्तु यास्क 'मार्गतेः गतिकर्मणः' कहते हैं / मृग + कः / जाग्रत् जागृ + शतृ / विदरः वि+/दृ + अप् (भावे ) / प्रणाली प्रकर्षण नलयति ( आप्याययति ) इति + प्र + 1/नल् + घञ् ( कर्तरि ) + ङीष् / __ अनुवाद-"ब्रह्मा ने तुम्हारे नयनों को बहुत से रंगों-श्याम, श्वेत और रक्तों से रंग-बिरंगा और अद्भुत बनाकर कृष्णसार मृग के नयनों को पास में ही दीख रही नाली-जैसी खाई की रेखा के रूप में गलहत्थी दे दी थी क्या ?" // 38 // टिप्पणी-हम देखते हैं कि मृगों की आँखों के पास लम्बी छोटी खाईजैसी नीचे धंसी रेखा स्वभावतः रहा करती है। इस पर कवि की कल्पना यह है कि ब्रह्मा जब नल की आँखें बना रहा था, तो उसने देखा कि पास में कृष्णसार मृग खड़ा है, जो चाह रहा था कि उसकी आँखें नल की आँखों-जैसी हो। ब्रह्मा को बुरा लगा और उसने मृग की धृष्टता के लिए उसे दण्डित करना
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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