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________________ 202 नैषधीयचरिते मानी जाती हैं / दमयन्ती की भुजायें मृणाल को हराये हुए हैं अर्थात् गौर वर्ण और मुदुता में मृणाल से बहुत आगे पहुंची हुई हैं / हार खाया व्यक्ति अपयश का भागी बन जाता है। कवि-जगत् में यश यदि श्वेत होता है, तो अपयश काला, कमल की तरह मृणाल भी कीचड़ में होता है। उस पर कवि ने कल्पना की है मानो काला कीचड़ जिसमें मृणाल मग्न है, कीचड़ न हो, काला अपयश हो / हमारे विचार से यह उत्प्रेक्षा है. किन्तु विद्याधर 'पंकमत्सु' पर अकीर्तित्व का आरोप मानकर रूपक कहते हैं। उनका ध्यान 'किमु और 'मूर्तासु' शब्दों की ओर नहीं गया हैः जो उत्प्रेक्षा के स्पष्ट प्रयोजक बने हुए हैं। भुजाओं और मृणाल पर चेतन-व्यवहार-समारोप होने से समासोक्ति पूर्ववत् चली ही आ रही है / 'निःसूत्र' में श्लेष है। विद्याधर छेकानुप्रास भी कह गये हैं। 'भ्यां, भ्यां, भ्याम्' में भ और य व्यञ्जनों की एक से अधिक बार आवृत्ति है, एक बार नहीं / छेक देखो तो एक ही बार की आवृत्ति चाहता है। इसी तरह ‘मृत्सु मूर्तासु' में भी छेक नहीं, क्योंकि 'मूर्तासु' 'कीतिषु' में र और त के एकवार के साम्य में ही छेक हो सकती है, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। रज्यन्नखस्याङ्गुलिपश्चकस्य मिषादसो हैगुलपद्मतूणे। हैमैकपुङ्खास्ति विशुद्धपर्वा प्रियाकरे पञ्चशरी स्मरस्य // 70 // अन्वयः- रज्यन्नखस्य अङ्गुलि-पञ्चकस्य मिषात् हैमैकपुङ्खा विशुद्धपर्वा असौ स्मरस्य पञ्चशरी प्रियाकरे हैगुलपद्मतूणे अस्ति। टीका-रज्यन्तः स्वभावतः रक्तवर्णा भवन्तः नखाः ( कर्मघां० ) यस्य तथाभूतस्य ( ब० वी० ) अङ्गुलीनाम् करशाखानां पञ्चकम् पञ्चात्मक-संख्या ( 10 तत्पु० ) तस्य मिषात् व्याजात् हैमा: सौवर्णाः एके केवला: श्रेष्ठा इत्यर्थः पुङ्खाः मुखानि पक्षयुक्तभागा इति यावत् ( उभयत्र कर्मधा० ) यस्याः तथाभूता (ब० वी० ) विशुद्धानि ऋजूनि पर्वाणि ग्रन्थयः ( कर्मधा० ) यस्याः तथाभूता (ब० वी० ) असो पुरो दृश्यमाना स्मरस्य कामस्य पञ्चानां शराणां बाणानाम् समाहारः पञ्चशरी ( समाहार द्विगु ) प्रियायाः प्रेयस्याः भैम्याः करे हस्ते ( 10 तत्पु० ) एव हैङ गुलम् हिङगुलेन सिन्दूरेणेति यावत् रक्तम् पद्मम् कमलं कमलात्मक इत्यर्थः तूणः तूणीरः तस्मिन् (उभयत्र कर्मधा० ) अस्ति / दमयन्त्याः पञ्चागुलयः कामस्य पञ्चशरा: रक्तनखाः सिन्दूररक्ता पुङ्खाः, कररूपं पद्म च तूणीरोऽस्तीति भावः // 70 //
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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