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________________ नैषधीयचरिते टिप्णी -यहाँ से लेकर कवि अब पाँच श्लोकों में दमयन्ती के कानों का वर्णन करता है। उसके गोल-गोल कानों पर कवि यह कल्पना कर रहा है कि ये ब्रह्मा ने काम और रति की पूजा हेतु नैवेद्य के रूप में मानों पूड़े बनाये हुये हों। पूजा में नैवेद्य के अतिरिक्त जल और पुष्प भी अपेक्षित होते हैं / दमयन्ती के वियोगाश्रु जल और नेत्र पुष्प बन गये। पूजा-सामग्री पूरी हो गई। ब्रह्मा द्वारा कामको दी हुई यह भेंट उसके शस्त्रागार में एक नया शस्त्र सिद्ध होगी। भाव यह है कि दमयन्ती की आँखें कानों तक पहुची थीं। उसके सुन्दर कानों को देख काम भड़क उठता था। किम् शन्द वाच्य उत्प्रेक्षा तो स्पष्ट ही हैं, जिसके साथ बाष्प के छद्म से जल की स्थापना तथा नेत्र के छद्म से पुष्प की स्थापना होने से अपह्नति भी है। विद्याधर रूपक भी मान रहे हैं जो नेत्र-पद्म में है / लेकिन हम यहाँ 'नेत्रे पद्म इव' इस तरह उपमा कहेंगे, क्योंकि उपमा में नेत्र की प्रधानता रहने से उस पर पुष्पकी स्थापना में कठिनाई नहीं आयेगी। रूपक में पद्म की प्रधानता होने से पुष्प की स्थापना ठीक नहीं बैठती, क्योंकि पद्म और पुष्प प्रायः एक ही ठहरे / 'रति पति' में पदान्तगत अन्त्यानुप्रास अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। इहाविशद्येन पथातिवक्र: शास्त्रोधनिष्यन्दसुधाप्रवाहः / सोऽस्याः श्रवःपत्रयुगे प्रणालोरेखैव धावत्यभिकर्णकूपम् // 62 // अन्वयः-अतिवक्रः शास्त्री 'प्रवाहः येन यथा इह अविशत् , सः अस्याः श्रवःपत्रयुगे प्रणाली-रेखा एव अभिकर्णकूपम् धावति ! टीका-अतिशयेन वक्र: वक्रोक्तिश्लेषादिना दुर्बोधः, अप च अनृजुः ( प्रादि तत्पु० ) शास्त्राणाम् ओघः समूहः तस्य नियन्दः सारः ( उभयत्र प० तत्पु० ) एव सुधा-प्रवाहः ( कर्मधा० ) सुधायाः अमृतस्य प्रवाहः (10 तत्पु० ) येन पथा मार्गेण इह अस्याम् दमयन्त्यामित्यर्थः अविशत् प्रवेशमकरोत् स: मार्गः अस्याः दमयन्त्याः श्रवसी कौं पत्रे दले इव ( उपमित तत्पु० ) तयोः पुगे द्वये (10 तत्पु०) प्रणाली नाली तद्वत् रेखा ( उपमान तत्पु० ) एव कर्णयोः कूपः उदपानम् ( स० तत्पु० ) तम् अमि उन्मुखम् इति अभिषणकूपम् (अव्ययी०) पावति वेगेन गच्छति / कर्णाभ्यन्तरीयरेखा-प्रणालिकया शास्त्रनिष्यन्द-रूपामृतप्रवाहो दमयन्त्या हृदये प्राविदिति भावः // 62 //
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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