SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्तमः सर्गः लिया। निमेष पर यन्त्रत्वारोव होने से रूपक है, जो उत्प्रेक्षा के लिए भूमि बना रहा है जिसका वाचक 'किम्' है, इसलिए यहाँ इन दोनों का संकर है। विद्या. धर अतिशयोक्ति भी कहते हैं। 'मेश' 'मेष' में यमक 'विधातु' 'विधातुः' में छेक अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। ऋणीकृता कि हरिणीभिरासीदस्याः सकाशान्नयनद्वयश्रीः। भूयोगुणेयं सकला बलाद्यत्ताभ्योऽनयाऽलभ्यत बिभ्यतीभ्यः // 33 / अन्वयः-हरिणीभिः अस्याः सकाशात् नयनद्वयश्रीः ऋणीकृता किम् ? यत् अनया बिभ्यतीभ्यः ताभ्यः भूयोगुणा सकला इयम् बलात् अलभ्यत / टोका-हरिणीभिः मृगीभिः अस्याः दमयन्त्याः सकाशात् पाश्वत् नयनयोः नेत्रयोः द्वयम् युग्मम् तस्य श्रीः शोभा सौन्दर्यमिति यावत् ( उभयत्र 10 तत्पु० ) अनृणम् ऋणं सम्पद्यमाना कृतेति ऋणीकृता ऋणरूपेण गृहीतेत्यर्थः किम् ? यत् अनया दमयन्त्या बिभ्यतीभ्यः त्रस्यन्तीभ्यः ताभ्यः हरिणीभ्य:: भूयान् अत्यधिकः गुणः गुणनम् ( कर्मधा० ) यस्यां तथाभूता बहुगुणितेत्यर्थः (ब० वी० ) सकला निखिला इयम् श्रीः बलात् बलपूर्वकम् अलभ्यत लब्धा / मृगीभिः दमयन्तीतः ऋणत्वेन तन्नयनसौन्दर्यं गृहीतम् यत् समस्तम् ऋणम् सा चक्रवृद्धया बलपूर्वकं गृहीतवतीति भावः // 33 // व्याकरण-द्वयम् द्वौ अवयवावत्रेति द्वि + तयप , तयप को विकल्प से अयच् / ऋणीकृता ऋण + च्वि ईत्व कृ + क्त (कर्मणि) / बिभ्यतीभ्यः भी + शतृ + ङीप। अनुवाद-हिरनियों ने इस ( दमयन्ती ) के पास से इसकी दो आँखों की सुन्दरता ऋण-रूप में ले रखी थी क्या, जो इसने डरी हुई उन ( हिरनियों ) से सारी की सारी ( सूद द्वारा) कई गुणा बड़ी हुई बलपूर्वक प्राप्त कर ली है ? // 33 // टिप्पणी-ऋणी हिरनियाँ बेचारी डर रही थीं जब साहूकारिन दमयन्ती चक्रवृद्धि ब्याज के साथ अपना सारा का सारा ऋण बलात् उनसे ले बैठी। 'बिभ्यतीभ्यः' शब्द यहाँ साभिप्राय है, क्योंकि डरी हुई हिरनियों की चञ्चल चितवन में अनोखा सौन्दर्य थिरकता रहता है। इससे यह ध्वनित होता है कि दमयन्ती की आँखें चञ्चल नयनों वाली हरिणियों से भी अधिक सुन्दर और
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy