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________________ 150 नैषधीयचरिते ( कर्तरि ) / मन्मथः मथ्नातीति /मथ + अच ( कर्तरि ) मनसः मथ इति (पृषोदरादित्वात् साधुः ) / अभिषिच्येत अभि + /सिच् + वि० लिङ्, स को ष ( कर्मवाच्य ) / अद्भुत इसके लिए पिछला श्लोक देखिए। . - अनुवाद-यदि ब्रह्मा के स्थान में कामदेव अथवा मेरी कल्पना को बिठा दिया जाय, तब भी अनिर्वचनीय यह प्रत्येक अङ्ग के अद्भुत सौन्दर्य का निर्माण-कौशल बन सके या न बन सके / / 10 // टिप्पणी-दमयन्ती के अङ्ग-अङ्ग का अद्भुत सौन्दर्य देखकर मुंह बाये नल मनमें यह कल्पना करने लगे कि बूढ़ा ब्रह्मा भला ऐसा शिल्प-निर्माण कैसे कर सकता है ? स्वयं कामदेव तक भी ऐसी सजीव मूर्ति क्या ही गढ़ पायेगा / यह तो मेरी कल्पना से भी परे की नैपुणी है। मल्लिनाथ के अनुसार यहाँ ब्रह्मा के दमयन्ती के निर्माण से सम्बन्ध होते भी असम्बन्ध बताने में सम्बन्धे असम्बन्धातिशयोक्ति और कामदेव अथवा नलकल्पना द्वारा निर्माण से असम्बन्ध होते हुए भी सम्बन्ध की संभावना में असम्बन्धे सम्बन्धातिशयोक्ति है। 'प्रति' 'प्रती' में छेक अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास हैं। तरङ्गिणी भूमिभतः प्रभूता जानामि शृङ्गाररसस्य सेयम् / लावण्यपूगेऽजनि यौवनेन यस्यां तथोच्चैस्तनताघनेन // 11 // अन्वयः-'सा इयम् भूमिभृतः प्रभूता शृङ्गाररसस्य तरङ्गिणी' ( इति ) जानामि, यस्याम् तथा उच्चस्तनताधनेन यौवनेन (एव) उच्चस्तनता घनेन लावण्य-पूरः अजनि / टाका-सा इयम् दमयन्ती भूमिम् बिति धारयतीति तथोक्तात् भूभृतः ( उपपद तत्पु० ) भूमिपालात् भीमात् नृपात् एव भूमिभृतः पर्वतात् प्रभूता उत्पन्ना शृङ्गाररसस्य एतदाख्यरसविशेषस्य एव रसस्य जलस्य तरङ्गः उद्भकः एव तरङ्गाः वीचयः अस्यां सन्तीति तथोक्ता नदीत्यर्थः ( 'अथ नदी सरित् / तरांझणी' इत्यमरः ) अस्तीत्यहं जानामि अवगच्छामि, यस्याम् दमयन्तीरू - तरङ्गिण्याम् तथा तेन प्रकारेण उच्चैः उन्नती स्तनो कुचौ यस्यास्तथाभूतायाः * ( ब० बी० ) भावः तत्ता तया घनेन निविडेन यौवनेन तारुण्येन एव उच्चैः तारं यथा स्यात्तथा स्तनता गर्जता घनेन मेघेन लावण्यम् सौन्दर्यम् तस्य पूरः पूतिः एव पूरः जल-प्रवाहः ( 'पूरो जलप्रवाहः स्यात्' इति विश्वः ) ( 10 तत्पु० ) अजनि जनितः / यौवनजनितकामोद्र का दमयन्ती सौन्दर्य-नदी प्रतीयते इति भावः // 11 //
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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