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________________ 128 नैषधीयचरिते अस्तीति शेषः अहम् अपि नेत्रम् नेत्रशब्द-वाच्यम् न किमु ? अपि तु अहमपि नेत्रमस्मीति काकुः / तत् तस्मात् उभयोरपि नेत्रशब्दवाच्यत्वकारणादिति यावत् त्वम् नेत्रेण वाससा इव नेत्रेण इन्द्रियेण मया अपि स्वकीयम् उरः वक्षश्च नितम्बः सक्थि जघनयोः पश्चाद्-भाग इति यावत् च ऊरु जघने चेतसां समाहारः इति ( समाहार द्वन्द्व ) आलिङ्गय आश्लिष्य यथा नेत्राख्यं वासः त्वम् स्वाङ्गानि आलिङ्गितुं ( वेष्टयितुम् ) अनुमन्यसे तथा नेत्राख्यम् इन्द्रियं मामपि स्वाङ्गानि आलिङ्गितुं ( द्रष्टुम् ) अनुमन्यस्व तुल्यन्यायादिति भावः / (हे दमयन्ति !) मयि प्रसादं कृपां कुरु विधेहि इति एतत्कारणात् इव सा नलस्य दृक् तस्याः दमयन्त्याः पदयोः चरणयोः प्रार्थना-रूपेण पपात अपतत् / / // 8 // __व्याकरण--- वासः वस्ते (आच्छादयति शरीरम् ) इति वस् + अस्, णिच्च / प्रसादः प्र + /सद् + घञ् ( भावे ) / पपात/पत् + लिट् / अनुवाद-"( हे दमयन्ती ! ) रेशमी वस्त्र ही नेत्र नहीं, मैं ( आँख ) भी नेत्र नहीं हूँ क्या ? इसलिए मुझको भी ( अपने ) वक्षः, नितम्व और जधन का आलिंगन कराओ" इस कारण से मानो वह ( नल की दृष्टि) उस ( दमयन्ती) के पाँवो में गिर गई // 8 // टिप्पणी- कवि ने द्वयर्थक-रेशमी वस्त्र और आँख का वाचक - नेत्र शब्द को लेकर बड़ी मार्मिक कल्पना की है। रेशमी वस्त्र ( नेत्र ) दमयन्ती के अंगों का आलिंगन अर्थात् आच्छादन किये हुए हैं। दूसरे नेत्र ( आँख ) को ईर्ष्या हो गई कि नेत्र होने के नाते ही उसे भी अंगों के आलिंगन अर्थात् देखने की यह सुविधा मिलनी चाहिए, क्योंकि वह भी तो नेत्र है। यह सुविधा देने की कृपा करने के लिए मानो वह प्रार्थना के रूप में दमयन्ती के पाँवों में गिर गया। भाव यह है कि नल की आँख उसकी छाती, नितम्ब और जाँघों को देखने के बाद उसके पाँव निहारने लगी। यहाँ उत्प्रेक्षा स्पष्ट ही है, जिसका वाचक शब्द 'इव' है / 'नेत्र' 'नेत्रं' में छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। दशोर्यथाकाममथोपहृत्य स प्रेयसीमालिकूलं च तस्याः। इदं प्रमोदाद्भुतसंभृतेन महीमहेन्द्रो मनसा जगाद // 9 // अन्वयः-अथ महीमहेन्द्रः स प्रेयसीम् तस्याः आलिकुलम् च दृशोः यथाकामम् उपहृत्य प्रमोदाद्भुतसंभृतेन मनसा इदम् जगाद /
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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