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________________ 120 नैषधीयचरिते खूब संजोए रखा हुआ था, वह ( आज ) उसके देखने मात्र से ही पूर्ण हुआ जैसा मान लिया // 1 // टिप्पणी-'पल्लवित' शब्द से यह ध्वनित होता है कि नल ने मनोरथ को स्वयं लगाये एक वृक्ष का रूप दे रखा था; उसे पुष्पित और फलित देखकर उनके आनन्द की सीमा ही नहीं रही। यद्यपि उन्हें अभी प्रिया प्राप्त नहीं हुई है उसका साहचर्य भोग का आनन्द भी नहीं मिला है, तथापि इन्द्र-दूती के साथ उसकी बातों से उन्हें दृढ़ निश्चय हो गया कि वह उन्हें ही प्रेम करती है इसलिये उसके दर्शन मात्र से वे अपने को सफल मनोरथ समझने लगे और मानस पटल पर उसके अनुपम सौन्दर्य के चित्र खींचना आरम्भ कर देते हैं। पाठक जानते हैं कि उसके सौन्दर्य-चित्र पहले स्वयं कवि ने पोछे खींच रखे फिर उसने हंस के द्वारा भी खिंचवाये और अब फिर नल द्वारा खिचवा रहा है। सारे सप्तम सर्ग में उसी के चित्र हैं, लेकिन पाठक पायेंगे कि उनका रंग और ढंग कुछ और ही है। कहीं भी पुनरुक्ति नहीं मिलेगी सर्वत्र नवीकरण है / यही कवि की विशेष कला-नैपुणी है। विद्याधर ने यहाँ पूर्ववत् में 'विषमोपमा' कही है और उसका समन्वय यों किया है-'दर्शनमात्रेणैव नलस्य हृष्टत्वात् अथ मनोरथकार्यस्य महत्त्वे दमयन्ती विलोकनस्य कारणस्य अल्पत्वे विरोधे सति हर्षाधिक्येन समाधीयते / शब्दालंकार वृत्त्यनुप्रास है / इस सर्ग में किन्हीं श्लोकों में इन्द्रवज्रा है और किन्हीं में उपेन्द्रवज्रा है, जिनके लक्षणों के लिए पिछले सर्ग के प्रथम श्लोक की टिप्पणी देखिए / प्रतिप्रतीकं प्रथमं प्रियायामथान्तरानन्दसुधासमुद्रे / ततः प्रमोदाश्रुपरम्परायां ममज्जतुस्तस्य दृशौ नृपस्य // 2 // अन्वयः तस्य नृपस्य दृशौ प्रथमम् प्रतिप्रतीकम् प्रियायाम् ममज्जतुः, अथ अन्तरा "समुद्र ( ममज्जतुः ) ततः प्रमोद याम् (ममज्जतुः ) / ____टीका तस्य नृपस्य नरेशस्य नलस्य दृशौ नयने प्रथमम् आदी प्रतीके प्रतीके इति प्रतिप्रतीकम् प्रत्यवयवम् (अङ्गम् प्रतीकोऽवयव:) इत्यमरः (अब्ययी०) पियायाम् दमयन्त्याम् ममज्जतुः मग्ने बभूवतुः, अथ तत्पश्चात् अन्तः अन्तः करणे यः आनन्दः प्रत्येकावयवदर्शन-जनितामोदः ( सुप सुपेति समासः ) स एव सुधा लमृतम् ( कर्मधा० ) तस्याः समुद्रे सागरे ममज्जतुः, ततः तदनन्तरम् प्रमोदेन
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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