SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नैषधीयचरिते व्याकरण-स्थिर तिष्टतीति /स्था + किरच / आस्था आ + /स्था + अङ् + टाप् / आयातवतीम् आ + /या + क्तवत् ( कर्तरि ) + ङीप् / परेतः परा+ इ + क्तः ( कर्तरि ) / नभस्वान् नभः प्रचलनार्थस्थानम् आकाशम् अस्यास्तीति नभस् + मतुप , म को व, यास्कानुसार नभसि-आकाशे श्वसितीति / सख्यम् सख्युर्भाव इति सखिन् + यत् / निरास्थम् निर् + /अस् + लुङ आदेश, थुक् का आगम / अनुवाद-(क्योंकि मैं नल को चाहती हूँ ) इसलिए ही ( हे दूती ) दृढ़ विश्वासपूर्वक मन से-जैसे शीघ्र आई यम की दूती को, वायु से जैसे ( शीघ्र आई ) अग्निकी दूतीको और गंगा से जैसे ( शीघ्र आई ) वरुण की दूती को ( मैंने दूर से ही ) टरका दिया ( तुझसे तो दो बातें भी करली ) // 109 // टिप्पणी-इस श्लोक में अर्थ कुछ क्लिष्ट है। इस कारण टीकाकार गड़बड़ा रहे हैं। मल्लिनाथ मनसैव, नभस्वतैव, त्रिस्रोतसैव' पाठ देकर 'मन से ही' "वायु से ही' 'गङ्गा से ही शीघ्र आई' अर्थ कर रहे हैं। जो जच नही रहा है। इन पर ही सवार हो दूतियों का आना अर्थ कुछ अटपटा-सा ही है। नारायण 'मनसेव' का 'मनसैव' व्याख्या करके 'दूतीम् मनसैव निरास्थम् निराकृतवत्यस्मि' अर्थात् मन से ही मैंने दूती को हटा दिया, लेकिन आगे 'नभस्वतेव = वायुनेव, त्रिस्रोतसा = मन्दाकिन्या इव निरास्थम् 'अर्थात् वायु से जैसे मन्दाकिनी से जैसे दूती को मैंने हटा दिया। यह अर्थ भी स्पष्टतः कुछ समझ में नहीं आ रहा है। चाण्डू पण्डित ने भी दो-तीन विकल्प लेकर व्याख्या की है। उनकी अन्तिम विकल्पवाली व्याख्या ही हमें ठीक लगी जो हमने भी अपनायी है। कवि वड़े वेग के साथ आई हुई दूतियों के सम्बन्ध में तीन कल्पनायें कर रहा है / यमकी दूती मानो मन से आई हो। यम प्रेतपति हैं, प्रेतों के प्राण उसके हाथ हैं और मन प्राणाधीन होते ही ऐसा लगता है प्राण के साथ आए किसी प्रेत के मन को उसने अपनी दूती को देकर कहा हो जा इसको अपना वाहन बनाकर शीघ्र दमयन्ती के पास पहुंच जा। मन बहुत तेज चलने वाला है / इस कल्पना से सूचित हो जाता है कि दूती इतनी द्रुत गति से आई जैसे कि मन हो इसी तरह अग्नि का मित्र वायु होता है, जिसे उसने अपनी दूती को सोंप दिया, अतः वह वायु के कन्धों पर चढ़ी जैसी आई अर्थात् वह वायु कीसी तेज गति से आई / इसी तरह 'वरुणः सरितां पतिः' कहा जाता है। उसने भी मानो
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy