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________________ 112 नैषधीयचरिते हो तो ठीक है कि तुम मुझे रोको, सखी जो हों, लेकिन जब वस्तुस्थिति ऐसी नहीं है, मार्ग साफ है तो तुम्हें चुप ही रहना चाहिए। रही बात मेरे आनन्द की कि वह नल के साथ है या इन्द्र के; इसे तुम मेरी इच्छा पर छोड़ दो। मनु के शब्दों में 'सर्वमात्मवशं सुखम्' / इस तरह यहाँ हमारे विचार से अप्रस्तुत सामान्य के द्वारा प्रस्तुत दमयन्ती-रूप विशेष के व्यङ्गय होने से अप्रस्तुत-प्रशंसा अलंकार है। आपद् पर कूपत्वारोप होने से रूपक है। विद्याधर ने काव्यलिङ्ग भी माना है, इस तरह इन सभी का संकर समझिये / शब्दालंकारों में से 'दन्धुर्' 'बन्धुर्' 'दस्तु' 'वस्तु' में पदान्तगत अन्त्यानुप्रास, 'बन्धु' 'बन्धु' में यमक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। इत्थं प्रतीपोक्तिमति सखीनां विलुप्य पाण्डित्यबलेन बाला। अपि श्रुतस्वर्पतिमन्त्रिसूक्ति दूतों बभाषेऽद्भुतलोलमौलिम् / / 108 // अन्वयः-बाला सखीनाम् प्रतीपोक्तिमति पाण्डित्यबलेन इत्थम् बिलुप्य श्रुत 'सूक्तिम् अपि अद्भुतलोलमौलिम् दूतीम् वभाषे / टीका-बाला युवतिः दमयन्ती सखीनाम् आलीनाम् प्रतीपा प्रतिकूला नलविरोधिनीत्यर्थः या उक्ति: वचनम् ( कर्मधा० ) तस्याः मतिम् बुद्धिम् (10 तत्पु० ) नलविरुद्धविचारानिति यावत् पण्डितायाः विदुष्याः भावः इति पाण्डित्यम् वैदुष्यम् तस्य बलेन सामर्थ्येन इत्यम् उक्तप्रकारेण विलुप्य अपाकृत्य श्रुता आकर्णिता स्वः स्वर्गस्य पत्युः इन्द्रस्य मन्त्रिणः सचिवस्य वृहस्पतेरित्यर्थः सूक्तिः सुभाषितम् ( उभयत्र 10 तत्पु० ) यया तथाभूताम् ( व० वी० ) अपि अद्भुतेन दमयन्त्या पाण्डित्येन जनितेन आश्चयेंण लोल: सकम्पः ( तृ० तत्पु० ) मौलि: शिरः ( कर्मधा० ) यस्या तथाभूताम् ( ब० वी० ) दूतीम् इन्द्रस्य कुट्टनीम् बभाषे जगाद // 108 // ___ व्याकरण-प्रतीप-प्रतिगता आपो यत्रेति प्रति + अप् + अच् , अप को ईप / मतिः /मन् + क्तिन् ( भावे ) / पाण्डित्यम् पण्डिताया भाव इति पण्डिता + ष्य , पुंवद्भाव / स्वर्पतिः स्वः पतिः ( सुप्सुपेति समास ) 'अहरादीनां पत्यादिषु' से रेफादेश। . अनुवाद-बाला ( दमयन्ती ) सखियों के विरोधोक्ति भरे विचारों का ( निज ) पाण्डित्य के बल से खण्डन करके ( इन्द्र की ) दुती को बोली, जो
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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