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________________ 25 पचमसर्गः कलङ्कः अपवादजनितलान्छनम् , शीता शोतला माः प्रकाशो ( कर्मधा० ) यस्य तथाभूते (10 बी०) चन्द्रमसि पर केवलं शशकः शशः अङ्कः चिहम् अस्ति / चन्द्रमसि कलस्तु शशकस्य चिन्न स्वपवादस्य, अपवादस्य कलवस्तु निखिलेऽपि चन्द्रवंशे केवलं त्वयि एव लगिष्यति यदि वं स्वपतियां न पालयिष्यसीसि मावः / / 120 / / ज्याकरण-याचमानान / याच +शानच ( कर्तरि ) / अपदृष्टिः अपकृष्टा दृष्टिः ( प्रादि स.) दृष्टिः दश् +क्तिन् ( मावे ) / तुष्टिः Vतुष्+क्तिन् (भावे ) / स्वादृशस्य युष्मद् + दृश्+ का , युष्मद् को खदादेश और स्व को दीर्घ / मास् /मास्+विप् ( भावे ) / शशक: लघुः शशा इति शश+कन् ( अल्पायें ) / अनुवाद-याचकों की ओर ( तुम्हारी ) जो बुरी निगाह, जो मौन-वृत्ति और जो भप्रसन्नता है-यह सब तुम जैसे पर कलक है, चन्द्रमा पर ता छोटे से खरगोश का चिह्न-मात्र है / / 120 / / टिप्पणी-विद्याधर ने यहाँ व्यतिरेक कहा है, क्योंकि नल पर कलंकरूप अतिशय बताया गया है / चन्द्रमा पर तो खरगोश का सा ऐसा सामुद्रिक चिह्न मात्र है जैसा कि भगवान् विष्णु के शरीर पर काला-काला ओवरस-चिह है। इसे कलंक नहीं कह सकते हैं। सारे कुल में आदि कलंकी तो नल, तुम ही बनोगे, जो वचन देकर मुकर रहे हो। शम्दालंकारों में 'दृष्टि' 'तुष्टि', 'मान' 'मनु' और 'कला' 'कल' में छेक 'लङ्कः' 'म:' में पादान्तगत अन्त्यानुप्रास और अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। नाक्षराणि पठता किमयाठि प्रस्मृतः किमथ वा पठितोऽपि / इत्थमर्थिजनसंशयदोलाखेलनं खलु चकार नकारः // 121 // अन्वयः-(हे नल,) अक्षराणि पठता ( भवता ) नकारः न अपाठि किम् ? अथवा पठितः अपि प्रस्मृतः किम् ? (नकारः) इत्थम् भर्थि"खेलनम् चकार खलु / टोका-(हे नल,) अक्षराणि वर्णमालामित्यर्थः पठता अभ्यस्यता भवता नकारः 'न' इत्यक्षरमित्यर्थः न पाठि पठितः किम् ? अथवा पठितः अभ्यस्तः अपि प्रस्मृतः विस्मृतः किम् ? नकारः इत्थम् एवम् अर्थिनां याचकानां चयस्य समूहस्य ( उभयत्र प० तत्पु० ) संशयः सन्देह एव दोला प्रेक्षा ( कर्मधा० ) तस्यां खेलनं क्रीडाम् ( स० तत्पु० ) चकार कृतवान् खलु निश्चये / पूर्व त्वया याचकानां प्रार्थनासु स्वमुखात् कदापि 'न' ( न ददामि ) इति नोच्चारितमासीत् / तस्मात् अस्मत् कृतेऽपि त्वयाऽधनिषेधो न कर्तव्य इति मातः / / 121 // ग्याकरण-प्रपाठि/पत्+लुङ् ( कमंत्राच्य ) / नकारः न+कार (स्वाथें ) / इत्यम् एतेन प्रकारेषेति इदम् +थम् / संशयः सम् + शो+अच् ( मावे ) / दोला दुल्यते अनयेति। दुल+कन् +टाप् / चकार / कृ+लिट् / प्रस्मृतः-चाण्डू पंडित के शब्दों में अत्र प्रस्मृतिः विस्मरणे रूढ़े, न तु योगात् प्रष्ट स्मरणे'। अनुवाद-(हे नक) वर्ष माला पढ़ते हुए तुमने 'न' पढ़ा ही नहीं, अथवा पढ़ा भी है तो उसे भुला दिया है क्या-इस प्रकार नकार (अमर ) याचक-समूह के संशय-रूपी झूले पर निश्चय ही झलने की कोड़ा किया करता था / / 121 / /
SR No.032784
Book TitleNaishadhiya Charitam 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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