________________ चतुर्थसर्गः 229 ने समुद्र-मन्थन किया था, तो मन्थन-दण्ड के रूप में मन्दराचल को समुद्र में डाला था। समुद्र में पर्वत के पड़ते ही सैकड़ों समुद्र-तल वासी जोव-जन्तु दबकर चूर-चूर हो गए थे। विरहिणियों का यह दौर्भाग्य ही समझिए, जो पर्वत द्वारा कुचले जाने से समुद्-वासी चन्द्रमा बच गया / पोतपयोनिधेः-देवताओं और कालेय नामक राक्षसों के मध्य युद्ध के समय यह होता था कि राक्षस देवताओं को मारकर समुद्र में छिप जाया करते थे। अगस्त्य मुनि देवताओं की सहायता कर रहे थे / वे राक्षसों को अपने भीतर शरण देने वाले समुद्र से रुष्ट हो गए और आचमन करके सारा ही समुद्र पो गए। समुद्र का पान करने से वे उसके भीतर छिपे सभी कालेय-राक्षसों को डकार गए, लेकिन विरहिणियों के दौर्भाग्य से चन्द्रमा अगस्त्य की जठराग्नि द्वारा डकारे जाने से भी बच निकला। किमसुमिग्लपितै जड ! मन्यसे मयि निमज्जतु भीमसुतामनः / मम किल श्रुतिमाह तदर्थिकां नलमुखेन्दुपरां विबुधः स्मरः // 52 // अन्वयः-हे जड, ग्लपितैः असुभिः भीमसुतामनः मयि निमज्जतु, इति मन्यसे किम् ? किल विबुधः स्मरः मम तदथिकाम् श्रुतिम् नलमुखेन्दुपराम् आह / / 52 // टीका-हे जड मूर्ख! ग्लपितेः क्षति नीतैः गतैरित्यर्थः असुमिः प्राणैः भीमस्य सुतायाः पुत्र्याः मनः मानसम् ( उभयत्र 10 तत्पु०) मयि चन्द्रे निमज्जतु निलोयताम् , गतेषु दमयन्त्याः प्राणेषु तस्याः मनो मयि चन्द्रे निलीनं भविष्यतीत्यर्थ इति मन्यसे अवगच्छसि किम् ? मैवं चित्ते कुविति भावः, किल यतः विबुधः देवो विद्वाँश्च स्मरः कामः मम सः अर्थः मरणानन्तरं मनसः चन्द्रमसि लय-रूपः (कर्मधा० ) यस्याः तथाभूताम् (ब० वी०) श्रुतिम् वेदवाक्यम् नलस्य मुखम् आननम् ( 10 तत्पु० ) एव इन्दुः चन्द्रः परं प्रधानम् ( उभयत्र कर्मधा० ) यस्याः तथाभूताम् (ब० वी०) आह प्रतिपादयति अर्थात् मरणानन्तरं मनसो चन्द्रविलय प्रतिपादिका अतिः मत्सम्बन्धे वल्लयपरका नास्ति, प्रत्युत नलमुखचन्द्रलयप्रतिपादिकाऽस्ति कामं यथेच्छं कदर्थय माम् , त्रिकालेऽ. प्यहं त्वदधीना न भविष्यामीति मावः // 52 // व्याकरण-ग्लपितः इसके लिए पीछे श्लोक 48 देखिए। श्राह/+लट्, ब्र को प्राह बादेश / श्रुतिः श्रयते इति श्र+क्तिन् ( कर्मणि)। विबुधः बोधतीति /बुध+का विशेषेष बुध इति विबुधः ( प्रादि तत्पु० ) / अनुवाद-रे मूर्ख ( चन्द्र): मेरे प्राण चले जाने पर क्या तू यह समझता है कि 'दमयन्ती का मन मुझमें लीन हो जावे'? वास्तव में मेरे सम्बन्ध में उस (चन्द्र में मन का लय-रूप ) अर्थ को बताने वाले वेद-वाक्य को विद्वान् काम देवता नल के मुख-चन्द्र पर ही लागू होने वाला कहता है // 52 / / टिप्पणी-'चन्द्रमा मनसो जातः' इस भति के अनुसार चन्द्रमा परमात्मा के मन से उत्पन्न हुआ इसलिए प्राप्पियों की मृत्यु के बाद उनके मन चन्द्रमा में विलीन हो जाते हैं। वेद में कहा 1. गहितैः।