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________________ 28 नैषधीयचरिते टिप्पणी-यहाँ कवि ने श्लेषानुपाणित अपस्तुत-विधान कर रखा है। 'नल' और 'अनल' तथा 'यथा उद्यमानः' 'यथा ऊह्यमान्ः' में सभंग श्लेष है, जहाँ शब्दों का भंग अर्थात् तोड़-मरोड़ करना पड़ता है जब कि अन्यत्र अभंग श्लेष है। इसलिए यह श्लिष्टोपमा है। माव यह है चित्र आदि में देखकर एवं चारणों के मुख से नल के विषय में सुनकर दमयन्ती नल पर आसक्त हो उठी और उसके युवा मन में कामविकार भड़क उठा। मदन-विष्णुपुराण के अनुसार महादेव द्वारा कामदेव के भस्म कर दिए जाने पर जब उसकी पत्नी रति उनके आगे बहुत रोई-पोटो, तो उन्होंने आशासन दे दिया कि उसका पति फिर उत्पन्न हो जायेगा / तदनुसार कामदेव फिर भगवान् कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में अवतीर्ण हुआ। उसका पुत्र अनिरुद्ध हुआ, जो अत्यन्त सुन्दर था। एक दिन बाणासुर को पुत्री उषा स्वप्न में एक सुन्दर युवक देख बैठी, और तत्क्षण उस पर मोहित हों उसके हेतु तड़पने लगी। उसकी सखी चित्र. लेखा ने जगत् के सारे सुन्दर युवकों के चित्र उसके आगे रख दिए कि बता तेरा मन-हर वह कौनसा युवक है / उषा ने उसे बता दिया। वह अनिरुद्ध ही था। फिर चित्रलेखा आसुरी माया रचकर उसी रात द्वारिका में सोये पड़े अनिरुद्ध को उड़ा ले गई और उषा से मिला दिया। बाणासुर को इस बात का पता चल गया। उसने तत्काल शत्रु-पुत्र को बंदी बना दिया और नगर के चारों ओर आग लगा दी जिससे वह भाग न सके अथवा बाहर से आकर कोई उसे छुड़ा न ले जा सके। इधर नारद से श्रीकृष्ण को इस बात का पता चल गया। वे अपने भाई बलराम और पुत्र प्रद्यम्न को साथ लिये, गरुड़ पर सवार होकर शोणितपुर ना पहुँचे और युद्ध में बाणासुर को मारकर उषा सहित अपने पौत्र अनिरुद्ध को घर ले आये / / 32 / / नृपेऽनुरूपे निजरूपसंपदा दिदेश तस्मिन् बहुशः श्रुतिं गते / विशिष्य सा भीमनरेन्द्रनन्दना मनोमवाशकवशंवदं मनः // 33 // अन्वयः-सा भीम-नरेन्द्र-नन्दना बहुश: श्रुति गते निज-रूप-सम्पदाम् अनुरूपे तस्मिन् नृप मनोभवाशैकवशंवदम् मनः विशिष्य दिदेश / टीका-सा भीमश्चासौ नरेन्द्रः (कर्मधा०) तस्य नन्दना पुत्री (प०तत्पु०) दमयन्तीत्यर्थ. बहुशः = बहुवारम् अति =श्रवणं गते प्राप्ते = श्रवणेन्द्रिय-गोचरोभूते इत्यर्थः निजम् = स्वकीयम् यत् रूपम = सौन्दर्यम् (कर्मधा०) तस्य सम्पदाम् अतिशयानाम् ( 10 तत्पु० ) अनुरूपे = योग्ये तास्मन् नृपे नले इत्यर्थः मनो०-मनोमवः = कामः तस्या प्राज्ञायाः=प्रादेशस्य (प० तत्पु० ) एकम् = मुख्य वशं वदं = वशवति ( कर्मधा० ) मन:= स्वान्तम् विशिष्य राजान्तरेभ्य आकृष्येत्यर्थः दिदेश, निदधौ दमयन्त्याः कामाधीनं मनो नले श्रासक्तमभवदित्यर्थः // 33 // व्याकरण-नन्दना नन्दयतीति /नन्द +ल्यु+टाप। बहुशः बहु+शस् / श्रुतिः श्रय अनयेति श्रु+क्तिन् ( करणे ) / अनुरूपम् रूपम् अनु इति / मनोभवः भवतीति मव इति भू+अच् ( कर्तरि ) मनसिभव इति / वशंवदः-वश+Vवद् +खच् + मुम् / विशिल्य विका शिष् + ल्यप् /
SR No.032783
Book TitleNaishadhiya Charitam 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1997
Total Pages164
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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