________________ भूमिका श्रीहर्ष द्वारा प्रारमपरिचय-प्राचीन संस्कृत कवियों के सम्बन्ध में यह बात आम पाई जातो है कि वे इतने निरमिमानी रहे कि अपने व्यक्तिगत जीवन के विषय में कोई जानकारी नहीं दे गये। कालिदास, भास प्रभृति मूर्धन्य कलाकारों का जीवन-वृत्त भाज तक अन्धकार के गर्त में पड़ा हुआ है / उनके सम्बन्ध में निश्चित रूप से हम अब तक कुछ नहीं जान पा रहे हैं; अटकल ही लगा रहे हैं, किन्तु अपवाद-स्परूप बापम की तरह मीहर्ष भो इस कोटि में नहीं आते। इन्होंने अपनी कृति 'नैषधीय-चरित' में माता-पिता, रचनायें, आश्रित राजा आदि का थोड़ा-बहुत परिचय स्वयं दे रखा है। इनके सम्बन्ध में बाह्य साक्ष्य भी पर्याप्त मात्रा में मिल जाते हैं। इनके नैषध के प्रत्येक सर्ग का अन्तिम श्लोक व्यक्तिगत संकेतपरक है। इन्होंने अपने पिता का नाम भीहोर और माता का नाम मामल्लदेवी बता रखा है। पिता को इन्होंने 'कविराज-राजिमुकुटालंकारहोरः१ अर्थात् कवि-मण्डल के मुकुटों में अलंकार-स्वरूप हीरे के रूप में स्मरण किया है, जो काशीनरेश विजय-चन्द की राजसभा के प्रधान पण्डित थे। योग्य पिता के योग्य पुत्र श्रीहर्ष मो विद्वत्ता और काव्य-क्षेत्र में अपने पिता से किसी वरह कम नहीं रहे, प्रत्युत उनसे एक पग आगे ही बढ़े हुये हैं। ये मी पिता की तरह विजयचन्द के पुत्र जयचन्द्र को राज-सभा के प्रधान पण्डित और राजकवि बने रहे। उन्हें राज-दरबार में पान के दो बीड़े और आसन राजकीय सम्मान के रूप में प्राप्त थे / इससे स्पष्ट हो जाता है कि ये कितने प्रकाण्ड विद्वान् तथा महाकवि थे। किन्तु ध्यान रहे कि प्रकृत काव्यकार श्रोहर्ष बाण के सम-सामयिक नाटककार श्रीहर्ष ( सम्राट हर्षवर्धन ) से भिन्न हैं / नाटककार के नाम के साथ श्री शब्द आदरार्थ जोड़ा जाता है, जबकि काव्यकार का नाम ही श्रीहर्ष है। अपने प्रति आदरार्थ श्री जोड़ने पर इन्होंने अपने को श्रीश्रीहर्ष कह रखा है / देश काल-श्रीहर्ष का जन्म अथवा निवास स्थान कौन था-इस विषय में इन्होंने अपनी कृति में स्वयं कोई संकेत नहीं दिया है। इसलिये यह प्रश्न विवादग्रस्त है। इस पर विद्वानों के मिन्नभिन्न विचार हैं। डा० मट्टाचार्य-जैसे बंगाली विद्वानों का कहना है कि श्रीहर्ष गौड़ देश के निवासी थे। उनका तर्क नैषध के सातवें सर्ग के अन्तिम श्लोक में कवि द्वारा उल्लिखित अपने 'गाडोवीशकुलप्रशस्ति४ नामक ग्रन्थ में गौड़ राजवंश की प्रशस्ति पर आधारित हैं। गौड़ देश बंगाल को कहते हैं। 1. 'मोहर्षः कविराज-राजि-मुकुटालंकार-होरः सुतम् / श्रीहोरः सुषुवे मितेन्द्रियचयं मामल्ल देवी च यम् // 1 // 2. ताम्बूल-व्यमासनं च लमते यः कान्यकुब्जेश्वरात् (22 / 153) / 3. श्रीश्रीहर्षकवेः कृतिः (22 / 155) / 4. 'गौडोवीशकुलपशस्तिमणितिभ्रातयंयम् /