SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ 28 ] दमयन्ती का इच्छुक बनाकर प्रेय का त्रिकोष-नायक-नायिका खलनायक खड़ा कर बैठे। खलनायक इन्द्र ने कुटिल नीति अपनाकर नल की ही सहायता से अपने लिए रास्ता साफ कर हो लिया था, किन्तु यह दमयन्ती ही हो जो अपने सतीत्व एवं नल के प्रति अनुराग को अनन्य निष्ठा से प्रभावित करके इन्द्रादि को मार्ग से हटा पाये। पाणिग्रहण के बाद युगल के बीवन में जो मधु-मास आया, वह एक ऐन्द्रिय पर्व के रूप में चह पड़ा। इस मधुर मिलन अथवा संभोग शृङ्गार के जितने अधिक, मार्मिक, सूक्ष्म, वैविध्य भरे रंगीन चित्र श्रीहर्ष ने खींचे हैं, उतने अन्य कलाकार शायद क्या ही खींच सका होगा। सारा ही रति-रहस्य जैसे कवि ने हमारे आगे उघाड़कर रख दिया हो। इसी बीच स्वयम्बर में पिछड़ जाने वाले दूसरे खलनायक कलि का आ धमकना, युगल की रंगरलियों देख जलभुन जाना और बाद को बदला चुकाने के लिए उन दोनों का सुख-साम्राज्य ढाकर उन्हें बर्बाद कर देना। यह बताना हमारे काव्य का प्रतिपाहा नहीं। काव्य-विधानानुसार शृंगाररस को अङ्गा बनाकर कवि ने करुण, हास्य और वीर को अङ्ग रसों के रूप से यत्र-तत्र अभिव्यक्ति दे रखी है। करुण रस का मार्मिक चित्रण हमें नल द्वारा हंस को पकड़ने और बाद में छोड़ देने की घटना में मिलता है / अपने मारे माने की शंका में हंस का रहरहकर अपनी सद्यःप्रभूता प्रेयसी और बच्चों को याद करने और अपनी मृत्यु के बाद उनकी दयनीय दशा का चित्र खींचते हुए उसके हृदय-द्रावक विलाप में कितनी गहरी करुणा है, देखिये सुताः कमाहूय चिराय चुंकृत विधाय कम्प्राणि मुखानि के प्रति / कथानु शिष्यवमिति प्रमील्य स स्रुतस्य सेकाद् बुबुधे नृपाश्रुपाः // (1 / 142) सुनकर राजा नल मी शोक में दो आँसू बहाये बिना नहीं रह सके। श्रीहर्ष का यह करुणरसचित्र अपने में छोटा-सा होता हुआ मी करुष्परस के विख्यात चिदेरे मवमूति के चित्रों से क्या कोई कम है ? किन्तु करुण का शृङ्गार-विरोधी होने से अंग-रूप में उसका चित्रप यहाँ असंवैधानिक है। हास्य-रस के सम्बन्ध में हम पोछे देख आये हैं कि किस तरह कवि उसे यत्र-तत्र काफी लम्बा खींचता चला गया है। विवाह और युगल के मधुर मिलन के मधु-मास के समय पृष्ठभूमि बनकर किस तरह हास्य श्रृंगार को परिपुष्टि देता चला जा रहा है यह देखते ही बनता है। विस्तार के भय से हम एक-दो ही उदाहरण दे सकेंगे। दमयन्तो के स्वयंवर में इन्द्र के भी जाने की तय्यारी का समय है काऽपि कामपि बभाण बुभुस्सु, अण्वति निदश मर्तरि किश्चित् / एष कश्यपसुताममिगन्ता, पश्य कश्यप-सुतः शतमन्युः॥( 5 / 53) ___ अर्थात् कश्यप-सुत ( इन्द्र ) को दमयन्ती माहने कश्यप-मुता (प्रथिवी ) को जाता देख कोई देवागना इन्द्र पर कट व्यङ्ग्य कसती हुई अपनी किसी सखी से बोल उठी (जिसे कुछ-कुछ इन्द्र मी
SR No.032783
Book TitleNaishadhiya Charitam 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1997
Total Pages164
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy