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________________ .द्वाविंशः सर्गः। 1505 विजय पानेके लिए कामदेव भी अधिक ऊँचे स्थान-आकाशमें चढ़कर बजानेवाले शजको लिया है, ( अथच-कामदेवको देव होनेसे उसके शङ्खको भी स्वर्गमें दृष्टिगोचर होना उचित ही है ) क्योंकि दूसरा कोई ऐसा शूरवीर नहीं है, जो पुष्पोंको बाजा (शज) बना. कर उसके बजानेसे तीनों लोकोंको जीत ले / कामदेवके धनुष-बाणको पुष्पमय होनेसे उसके शङ्खको भी पुष्पमय होना उचित ही है ] // 21 // किं योगिनीयं रजनी रतीशं याऽजीजिवत्पद्मममूमुहश्च / योगद्धिमस्या महतीमलग्नमिदं वदत्यम्बरचुम्बि कम्बु // 22 // किमिति / येयं रजनी योगिनी स्त्रीपुंसयोगवती, अथ च,-शाक्तमन्त्रसिद्धा मारणोच्चाटनाद्यभिज्ञा स्त्री किम् ? या रतीशं दिवा निर्जीवमिव निजसंनिधेः अजीजि. वत् सजीवं चक्रे / पनममूमुहत् पद्मानि च समकोचयत् / रात्रौ हि स्त्रीपुंसयोगे काम उद्दीप्तो भवति, पद्मानि च संकुचन्ति / अलग्नं निराधारमम्बरचुम्बि आकाशवर्ति तारामात्रात्मकत्वादलग्नमराशिभूतं वा इदं प्रत्यक्षहश्यं कम्बु तारारूपः शङ्खोऽस्या रात्रियोगिन्या महती योगद्धि योगसमृद्धिं वदति / दिवादर्शनाभावादिदानी दृश्य. मानः शङ्को रात्रिर्जातेति कथयति / योगशक्ति विना निराधारं वस्तु कथं स्थापयेत् ? योगिन्यपि हि मृतमपि कंचिजीवयति / कंचिच्च मोहयति मूच्छा प्रापयति भ्रान्तं करोति वा / तस्माद्योगिनी किमित्युस्प्रेक्षा / 'कम्बु' शब्दस्य नपुंसकत्वमप्यस्तीति पूर्वमेवोकं स्मर्तव्यम् / अजीजिवत्, अमूमुहदिति, णौ चङि-' इत्युपधाहस्वः // 22 // ___ यह रात्रि योगिनी (स्त्री-पुरुष के योगवाली कोई स्त्री, पक्षा०-शाक्त मन्त्रके प्रभावसे योगसिद्धिको प्राप्त कोई स्त्री) है क्या ?, जिसने कामदेवको जीवित कर दिया तथा कमलको मोहित (निमीलित, पक्षा०-मूर्छित ) कर दिया / आधाररहित (विशाखा नक्षत्ररूप) यह सङ्ख आकाशमें स्थित है, (इसके द्वारा ) इस (योगिनी) की श्रेष्ठ योगसिद्धिको देखो। [दिनमें प्रागः कामोद्दीपन नहीं होनेसे कामदेव मरा-सा रहता है और वह स्त्री-पुरुषके संयोगसे रात्रिमें बढ़ जाता है तथा कमल रात्रिमें बन्द हो जाते हैं, अत एव जिस प्रकार कोई योगिनी किसी मृत व्यक्तिको जीवित कर देती है तथा किसी सजीवको भी मूच्छित कर देती है, तथा अपने योगबलके द्वारा शङ्खको आकाशमें निराधार रखती है, उसी प्रकार रात्रिमें कामदेवके पुनरुज्जीवित तथा कमलको निमीलित करनेसे और तारारूप विशाखानक्षप्ररूप शसको निराधार आकाशमें रखनेसे यह रात्रि मी योगिनी ( योगबलसे सिद्धिप्राप्त स्त्री, पक्षा-स्त्री-पुरुषके संयोगवाली कुट्टिनी) है क्या ? ऐसा ज्ञात होता है ] // 22 // प्रबोधकालेऽहनि बाधितानि ताराः खपुष्पाणि निदर्शयन्ती / निशाह शून्याध्वनि योगिनीयं मृषा जगदृष्टमपि स्फुटाभम् / / 23 / /
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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