________________ 1500 नैषधमहाकाव्यम् / लेना उचित ही है। रक्तवर्ण सूर्य अस्त हो गया, कसौटीपर घिसे गये सुवर्णपिण्डकी रेखाके समान सन्ध्या पीतारुणवर्ण हो गयी / आकाशमें ताराएं कौड़ियों के समान दिखलाई पड़ने लगी ] // 13 // पचेलिमं दाडिममर्कबिम्बमुत्तार्य संध्या त्वगिवोज्झितास्य / तारामयं बीचभुजादसीयं कालेन निष्ठयतमिवास्थियूथम् // 14 // पचेलिममिति / दाडिमबीजभुजा कालेन रक्तमर्कबिम्बमेव पचेलिमं तरोरुपर्येव स्वयं पक्वं दाडिमं फलमुत्तार्य गगनतरोनोटयित्वा बीजग्रहणार्थ भित्वा वा संध्यारुचिस्त्वगिव अस्य दाडिमस्य पकत्वाद्वक्तकृत्तिरिवोज्झिता परित्यक्ता / तद्बीजभक्षणार्थमुपरितनबीजकोशवरसंध्या पृथकता। तथा,-बीजभक्षणानन्तरं तारामयं तारारूपमदसीयममुष्य दाडिमस्य अमीषां बीजानां वा, संबन्धि अस्टना बीजमध्यस्थश्वेतकणानां यूथं वृन्दं निष्टयूतमिवोद्गीर्णमिव बीजानि भक्षयित्वा गृहीतरसं तदा न्तर्गतश्वेतकणवृन्दं पुनस्थूस्कृतमिव / न हि कालादन्यं सूर्यदाडिमं भक्षितुं समर्थः / अन्योऽपि दाडिममुत्तार्य तत्वचं परित्यज्य बीजान्यास्वाद्य गृहीतरसान्बीजकणांस्थू. स्कृत्य त्यजति // 14 // (अनारके ) बीजको खानेवाले सायङ्कालने सूर्यबिम्बरूप पके हुए अनारके फलको (पेड़से ) तोड़कर अरुणवर्णवाले सन्ध्यारूपी इस (अनारके फल ) के छिलकेको फेंक दिया है और (इस अनारके फलके दानोंके रसको सम्यक् प्रकारसे चूसकर ) इस ( अनार ) के तारारूप निःसारबीजोंको थूक दिया है / [ लोकमें भी कोई व्यक्ति पकनेसे लाल अनारके फलके छिलकेको फेंककर उसके दानोंके रसको चूसने के बाद उन नीरस बीजोंको थूक देता है / प्रकृतमें-कालकृत नियमसे ही सूर्यास्त आदि होनेसे सायङ्कालने सूर्यको अस्तकर दिया, सन्ध्या अनारके छिलके समान अरुण वर्ण हो रही है तथा तारासमूह अनारके नीरस बीजों के समान श्वेतवर्ण दीखता है ] // 14 // ( तारातति/जमिवादमादमियं निरष्ठेवि यदस्थियथम् / तनिष्कुलाकृत्य रविं त्वगेषा संध्योज्झिता पाकिमदाडिमं वा / / ) तारेति / सामरिकालेन का रविमेव तत् पवित्रमं दाडिमं निष्कुलाकृत्य निर्गतबीजकुलं कृत्वा बीजरूपं सारं गृहीत्वा तदीया स्वगेवैषा संध्या उज्झिता / 'वा'शब्दः संभावनायाम् / उज्झिता किमित्याशङ्कयाह-बीजानि आदमादं भक्षयित्वा भक्षयित्वा यस्य सूर्यरूपस्य पकदाडिमस्य संबन्धि अस्थियूथमिवेयं ताराततिनिरष्ठेवि निष्ठयता। जग्ध्वा इत्यादमादम् , अदेराभीचण्ये णमुल द्विर्वचनं च / निरष्ठेवि, कर्मणि चिण / निष्कुलाकृत्य, निष्कुलान्निष्कोषणे' इति डाच / क्षेपकोऽयं श्लोकः॥ ( सायङ्कालने ) सूर्य ( रूपी पके हुए अनारके फल ) को छीलकर अर्थात् उसके बीजको नका लकर सन्ध्यारूपी छिलकेको फेंक दिया है तथा बीजको खा-खाकर अर्थात् उसके