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________________ 1424 नैषधमहाकाव्यम् / मृत्युभीतीति / यस्मान्मृत्योर्यमादन्येषां भीतिः, मृत्यो तिकरः पुण्यजनेन्द्रो. राक्षसेन्द्रो रावणस्तस्यापि मरणपर्यन्तं त्रासदानागयोत्पादनातोर्जातं तदतिप्रसिद्ध लोकत्रये गीयमानं यश उपाय शुद्रोऽत्यल्पको दुर्जनस्तस्माद्भिया भयेन पामरलोकापवादभिया निजदारानात्मनः प्रियां सीतां विहाय परित्यज्य कथं न हीणवान् लजितवानसि / लजितव्यं तावत्त्वयेत्यर्थः / यो रावणाय भयं दत्तवांस्तस्य दुर्जनभीत्या निर्दुष्टजनप्रियापरित्यागे हि लजैव युक्ता। अतिमाननिजस्त्रीहर्ता रावणो नाशितो लोकापवादभयाञ्च सापि परित्यक्तेति / एतादृशः शूरोऽभिमानी लोकापवादभीरुश्च कोऽपि नास्तीति भावः / 'यातुधानः पुण्यजनः' इत्यमरः / 'भीतिं करोतीति ताच्छील्ये टः॥४॥ यमको भी डरानेवाले राक्षसेन्द्र ( रावण ) को त्रस्त करनेसे उत्पन्न उस ( वर्णनातीत ) यशको उपार्जितकर क्षुद्र दुर्जनके भयसे ( अग्निमें सुपरीक्षित एवं प्रेयसी) अपनी स्त्री ( सीता ) को छोड़कर क्यों लज्जित नहीं हुए ? [ महाबली रावण के विजेता तुमको क्षुद्र दुष्टसे डरनेमें लज्जित होना उचित था। स्तुति पक्षमें-तुम्हारे-जैसा शूरवीर अपनी एवं लोकापवादसे डरनेवाला संसारमें कोई नहीं है ] / / 4 // इष्टदारविरहौवपयोधिस्त्वं शरण्य ! शरणं स ममैधि / लक्ष्मणक्षणवियोगकृशानौ यः स्वजीविततृणाहुतियज्वा / / 72 / / इष्टेति / शरण्य ! हे आश्रितरक्षक ! राम ! यः त्वं भवान् , लक्ष्मणस्य अनुजस्य सौमित्रे, क्षणवियोगः अत्यल्पकालविच्छेद एव, कृशानुः अग्निः तस्मिन् , स्वजीवित. स्यैव निजजीवनस्यव, तृणस्य यवसस्य, आहुत्या आहुतिक्षानेन, निक्षेपेणेत्यर्थः / यज्वा इष्टवान् , याज्ञिक इत्यर्थः। 'सुयजो निप' / आसीरिति शेषः / सरयूसलिले निमज्ज्य देहं त्यक्तवतो लक्ष्मणस्य क्षणकालवियोगमपि असहिष्णुः यस्त्वं स्वजीवनं विसर्जयामासेत्यर्थः / सः तादृशः, इष्टदाराणांप्रियभार्यायाः सीतायाः, विरहः वियोग एव, औव बाडवानलः, तस्य पयोधिः आश्रयभूतसागरसदृशः, त्वं भवान् , मम मे, शरणं रक्षिता, एधि भव / प्रेयसीस्नेहेभ्योऽपि भ्रातृस्नेहो गरीयानिति तात्पर्यम् // 72 // हे शरणागतरक्षक ! जो तुमने लक्ष्मणके क्षणिक वियोगरूपी अग्निमें अपने जीवनरूप तृणकी आहुति से ( लक्ष्मणके क्षणिक वियोग में तृणवत् प्राणत्याग रूप ) यज्ञ करनेवाले हो, प्रेयसी सीताके विर हरूप बडवानलके समुद्र अर्थात् आश्रय वह तुम मेरा रक्षक होवो / [ यहां रामके स्त्रीविरहसे भ्रातृविरहका असह्यतर होना सूचित होता है ] / / 72 // ___ पौराणिक तथ्य-(१) सीतापहरणके बाद लङ्कामें युद्ध करते समय मेघनादके शस्त्रसे लक्ष्मणको मूच्छित देख राम भी तत्काल मूच्छित हो गये। यह कथा वाल्मीकि रामायणका है / युद्ध ( लङ्का ) काण्डमें आयी है। अथवा-(२) रामावतारके अवसानके समीप आनेपर उनके पास मुनिरूप धारणकर
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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