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________________ 1330 नैषधमहाकाव्यम् / लज्जावशात् दिने नासौ चुम्बतीति चेत्तदप्ययुक्तमित्याह-लजितानीति / . क्रीडितया रात्री स्वयमेव कृतसुरतक्रीडया, कर्तरि क्तः / अनया वः सख्या, मयि मम विषये मत्समीपे इति वा, यद्वा-मयि मम वक्षसि उत्थायेत्यर्थः / क्रीडितया कृतविपरीतविहारया इत्यर्थः / अनया लज्जितानि वीडितानि, भावे क्तः / जितान्येव निरस्तान्येव, दूरीकृतान्येवेत्यर्थः / सम्प्रति इदानीं पुनः, कं प्रति कम् उद्दिश्य, तानि लज्जितानि, प्रत्यावृत्तानि प्रत्यागतानि, तत् प्रत्यावृत्तेः निमित्तमित्यर्थः / पृच्छ जिज्ञासय / मयि प्रागेव लज्जास्यागात नाहमस्याः लज्जायाः निमित्तम् , भवतीनां समीपे लज्जायाः जातस्वात् भवत्य एव अस्याः लज्जाकारणमिति तर्कयामीति भावः // 56 // ___ (सुरतकाल में अनेकविध ) क्रीड़ा की हुई इस ( दमयन्ती ) ने मेरे विषयमें लज्जाको जीत ही लिया ( छोड़ ही दिया) है, फिर वह लज्जा किसके प्रति लौट आयी ( किसके साथ यह लज्जा करती है ) ? यह पूछो / [ मेरे साथ रात्रिमें अनेक क्रीड़ाओं को इमने सङ्कोच. रहित होकर किया, इससे स्पष्ट है कि इसने मुझसे लज्जा करना छोड़ दिया है, किन्तु इस समय तुमलोगों के सामने पुनः लज्जा कर रही है, अतः ज्ञात होता है कि तुम्हीं लोगोंसे यह लज्जित हो रही है ] / / 56 // निशि दष्टाधरायापि सैषा मह्यं न रुष्यति / क फलं दशते बिम्वी-लता कीराय कुप्यति ? / / 57 / / सम्प्रति अधरदशनादिरूपं स्वापराधं चतुर्भिः क्षालय ति, निशीति / सा एषा प्रिया, निशि रजन्याम , दष्टः कृतदंशनः, अधरः रदनच्छदः येन तस्मै तादृशायापि, मां नलाय, न रुष्यति न कुप्यति / 'क्रधद्रह-' इत्यादिना सम्प्रदानत्वाच्चतुर्थी। तथा हि-बिम्बीलता रक्तफलाख्यवृक्षस्य व्रततिः, ओष्ठोपमफलस्य वृक्षस्य लता इत्यर्थः / 'तुण्डिकेरी रक्तफला बिम्बिका पीलुपयॆपि' इत्यमरः / फलं प्रसवम्, निजमेव बिम्बफलमित्यर्थः। दशते निजच्चा छिन्दते, कीराय शुकाय, क्व कुत्र, कुप्यति ? ऋध्यति ? न वापीत्यर्थः। दृष्टान्तालङ्कारः, प्रतिवस्तूपमेति युक्तमिति केचित् // 57 // रातमें (दातोंसे ) अधरक्षत करने वाले मुझपर यह क्रोध नहीं करती है (पाठा०-करे), क्योंकि ( बिम्बी ) फलको काटनेवाले तोतेपर बिम्बीलता कहां ( किस देश या समयमें ) क्रोध करती है ? अर्थात् कभी क्रोध नहीं करती, अतः इसे मुझपर क्रोध नहीं करना चाहिये / / ___ शृणीपदसुचिह्ना श्रीश्चोरिता कुम्भिकुम्भयोः / . पश्यैतस्याः कुचाभ्यां तन्नपस्तौ पीडयामि न ? / / 58 / / ____1. 'रुष्यतु' इति पाठान्तरम्। 2: 'सृणी-' इति दन्त्यादि पाठः 'प्रकाश'व्याख्यातः।
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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