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________________ 1318 नैषधमहाकाव्यम्। अहम् अनुरूपं यथा तथा, वर्तते विद्यते, व्यवहरतीत्यर्थः। अत एवेयं भवति ससङ्कोचा भस्मासु तु तद्वर्जिता स्वभावत एव, एवञ्चायमुपालम्भः नोचितः इति भावः॥३८॥ (पहले नलोक्त 'कस्मादस्माकम् ...... ( 20 / 27)' वचनका उत्तर कला दे रही हैहे महाराज ! ) तुमने इस ( दमयन्ती ) को सम्यक् प्रकारसे जान लिया कि यह तुम्हारेमें नवीन अनुरागवाली है (इसीसे यह आपके सामने सलज्ज रहती है ), हम सखियों के प्रति पुराने स्नेहके योग्य बर्ताव करती है। [ तुम्हारेमें नया स्नेह होनेसे दमयन्तीका लज्जा ( सङ्कोच ) करना तथा हमलोगों में बचपनसे एक साथ रहनेके कारण पुराना स्नेह होनेसे सङ्कोचरहित होकर वर्ताव करना दमयन्तीका उचित ही है इस बातको तो आपने ठीक ही समझ लिया है / अथवा-तुमने इस दमयन्तीको सम्यक् प्रकार से नहीं समझा है, क्योंकि वह तुम्हारेमें नये (दृढ़ ) अनुरागवाली है तथा हम सखियों के प्रति पुराने अनुरागके योग्य अर्थात पुराना स्नेह होनेसे ( 'अतिपरिचयादवज्ञा' नीतिके अनुसार) शिथिल अनुरागवाली है; अत एव 'मेरे लिये दया करती है, तुमलोगोंके लिये नहीं दया करती' यह अपने दमयन्तीके विषयमें सत्य अनुमान किया है। अथवा-तुमने इस ( दमयन्ती ) को ठीक-ठीक द्रवित किया है, क्योंकि तुम्हारे विषयमें नवीन ( दृढ़ ) अनुरागवाली होनेसे हमलोगों के प्रति पुराने अनुरागके कारण शिथिल प्रीतिवाली है, अत एव मेरे प्रति दृढ़ानुरागवाली दमयन्ती हमलोगों ( सखियों ) को कुछ नहीं गिनती यह ठोक जान लिया है ] // 38 // स्मरशास्त्रविदा सेयं नवोढा नस्त्वया सखी / कथं सम्भुज्यते बाला ? कथमस्मासु भाषताम् / / 36 // यदुक्तम् 'अन्वग्राहि' इत्यनेन तम्रोत्तरं श्लोकद्वयेनाह-स्मरेत्यादिना। नवम् अचिरमेव, ऊढा परिणीता, अत एव लज्जासङ्कुचिता इत्याशयः। तथा बाला अवि. दग्धा, अत एव स्मरागमानमिज्ञा इति भावः। नः अस्माकम्, सा खया अभियुक्ता, इयं भवदङ्कस्था, सखी सहचरी दमयन्ती, स्मरशास्त्रविदा कामतन्त्रवेदिना, अत एव कामकलाकुशलेनेत्यर्थः / स्वया भवता, कथं केन प्रकारेण, सम्भुज्यते ? निर्भर सम्भोक्तुं शक्यते ? कथमपि नैवेत्यर्थः। अस्या लज्जाया एव दुर्वारविघ्नत्वादिति भावः / कथं केन वा प्रकारेण, अस्मासु अस्मत्समीपे, भाषताम् ? रात्रिवृत्तमसकोचं कथयतु ? बालत्वेन लज्जावशादस्मभ्यं स्वचेष्टितं नैव कथयिष्यतीत्यर्थः / तस्मान्नासो अलीकवाक न वा अस्मान् विप्रलभते, किञ्च नवोढासुलभलजापरवशाया अस्थाः कामशास्त्रवेदिनस्तव एवमुपालम्भः नोचितः इति भावः // 39 // (अब नलोक्त 'अन्वग्राहि...... ( 20 / 28) उपालम्भका उत्तर 'कला' दे रही है-) नवोढ़ा ( अत एव सलज्जा ) बाला ( अत एव अविदग्धा = कामशास्त्रानभिज्ञा ) इस सखी
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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