________________ 1170 नंषधमहाकाव्यम्। (पान, माल्य आदि लाने के लिए ) नियुक्तकर उस दमयन्तीके साथ केवल स्वयं ही रह गये / / 36 // __ सन्निधावपि निजे निवेशितामालिभिः कुसुमशस्त्रशास्त्रवित् / आनयद् व्यवधिमानिव प्रियामङ्कपालिबलयेन सनिधिम् / / 37 // सन्निधाविति / कुसुमशस्त्रशास्त्रवित् कामतन्त्रपारगः नलः, आलिभिः सहच. रीभिः, निजे सन्निधौ स्वसमीपे, निवेशितां स्थापितामपि, प्रियां दमयन्तीम् , व्यव. धिमान् इव असन्निहितः इव, अङ्कपालिः पृष्ठदेशस्पशपूर्वकालिङ्गन विशेषः, तद्रूपेण वलयेन बलयाकारवेष्टनेन, सन्निधिं स्वसमीपम् , आनयत् आनीतवान् / 'आदौ रतं 'बाह्यमेव प्रयोज्यं तत्रापि चालिङ्गनमेव पूर्वम्' 'तथा सामीप्यगां भीरुं नवोढां सबि. धावयत् / विश्वासच्छद्मना गाढालिङ्गनात् त्याजयेद् भयम् / ' इति कामशास्त्रादिति भावः // 37 // सखियों द्वारा अपने ( नलके ) पास में पहुंचायो गयो प्रिया ( दमयन्ती) को स्वयं पृथक बैठे हुए-से कामशास्त्रज्ञ नलने अङ्कमालोमें घेरने ( पीठ के पोछेझे पकड़कर अपने क्रोड़ में करने ) से समीपमें कर लिया। [ यद्यपि सखियोंने नलके पासमें दमयन्तीको पहुंचा दिया था, तथापि अपनेको प्रियासे दूरस्थ-सा मानकर कामशास्त्रज्ञ नलने पीछेसे दमयन्तीको पकड़कर गोदमें या-अत्यन्त पासमें बैठा लिया ] // 37 // प्रागचुम्बदलि के हिया नतां तां क्रमादरनतां कपोलयोः। तेन विश्वसितमानसां झटित्यानने स परिचुम्ब्य सिष्मिये // 38 // प्रागिति / स नलः, हिया लज्जया, नतां नम्रमुखोम् , तां भैमोम् , प्राक् पूर्वम् , अलिके ललाटपट्टके / ललाटमलिक गोधिः' इत्यमरः। अचुम्बत् चुम्बितवान् , अथ क्रमात् क्रमशः, दरनताम् ईषदवनताम् , पूर्वापे क्या किञ्चिदुन्नमितमुखीमित्यर्थः / कपोलयोः गण्डयोः, तामचुम्बदिति पूर्वगान्वयः / तेन पूर्वोक्त रूपमृदुव्यवहारेणेत्यर्थः। विश्वसितमानसां विस्तब्धचित्ताम् , तामिति शेषः / झटिति द्राक, आनने मुखे, परि. चुम्ब्य चुम्बयिस्वा, सिम्मिये स्मितवान् ,अधरचुम्बनहर्षात् ईषत् जहालेत्यर्थः / अनुप्रवेश लाभात् इति भावः // 38 // उस ( नल ) ने लज्जासे अतिशय नीचे मुख की हुई दमयन्तीको पहले ललाटमें, (फिर कुछ विश्वास उत्पन्न हो जानेसे ) कुछ नम्र ( पूर्वापेक्षा कुछ ऊपर ) मुखको हुई उसके दोनों कपोलोंमें और उससे विश्वस्त चित्तवाली उसको झट मुख में चुम्बन करके थोड़ा-सा मुस्कुरा दिया। [ 'अबतक जिस मुखचुम्बनके लिये मुझे लालायित रहनेपर भो तुम पास भी नहीं आती थी, उस मुखका चुम्बन अब मैंने कर लिया' इस आशयसे थोड़ा 1. 'वाह्यमिह' इति 'प्रकाश' कृत् /