________________ अष्टादशः सर्गः। . . 1156 रसात्मिका इति भावः / स्वादुः मधुरा, किनारीणां किन्नरस्त्रीणाम् , देवगायिकानामित्यर्थः, विकटा विपुला, गीतस्य गानस्य, झकृतिः झङ्काराख्यस्वरः, अनुकारिश. ब्दोऽयम , अनिशं नित्यम् , पुरा अतीते वर्तमाने भाविनि वा इत्यर्थः / न त्रुटति न छिनत्ति, न विविछना इत्यर्थः / 'पुरि लुङचास्मे' इति भूते लट् / अत्र गीतझङकृतेः शृङ्गाररससारणित्वेन रूपकालङ्कारः // 18 // जिस ( प्रासाद ) के सामने (आरोह-अवरोह क्रमके कारण ) कृष्णसार मृगके सींगके समान टेढ़ा, कर्णप्रिय, किन्नरियों के उच्च स्वरवाले गीतके शङ्कार से युक्त शृङ्गार रसका मुख्य प्रवाह सर्वदा नहीं टूटता था, (पक्षा०-जिसके सामने कृष्णसार मृगके सींगके समान टेढ़ी, मधुर ( स्वादिष्ट ), निर्मल जलवाली, किन्नरियों के समान बहुत-सी भ्रमरियोंके तीव्र गुञ्जनके झङ्कारसे युक्त एक नहर सर्वदा नहीं विछिन्न होती थी अर्थात कभी नहीं सूखती थी)। [ मधुर गान करती हुई दमयन्तीसे गान सीखने के लिए आयी हुई किन्नरियाँ जिस प्रासादके द्वारपर सर्वदा गान करती थीं (अत एव ) जिसका द्वार उनकी ध्वनिसे त्रिकालमें परिपूर्ण रहता था। पक्षान्तरका अर्थ स्पष्ट है। आगे 'तुङ्गप्रासादवासात् (21 / 129), श्लोकद्वारा प्रासादके आगे नहरका वर्णन होनेसे यहां पक्षान्तरसे नहर का वर्णन किया गया समझना चाहिये ] // 18 // भित्तिचित्रलिखिताखिलकमा यत्र तस्थुरितिहाससङ्कथाः / पद्मनन्दनसुतारिरंसुताऽमन्दसाहसहसन्मनोभुवः // 16 / / भित्तीति / यत्र सौधे, भित्तिषु कुड्येषु, चित्रलिखिता आलेख्यरूपतया अङ्किताः, अखिलाः सकलाः, क्रमाः अनुक्रमाः, पूर्वापरघटनाविशेषाः इत्यर्थः / यासां तादृश्या, पभनन्दनस्य पनयोनेः ब्रह्मणः, तस्य विष्णुनाभिकमलोत्पन्नत्वादिति भावः। सुतया कन्यया भारत्या, रिरंसुतारन्तुमिच्छुता, सा एव अमन्दं महन् , साहसम् अविमृष्य. कारित्वम् , तेन हसन् स्वप्रयाससाफल्यसन्तोषात् स्मयमानः, मनोभूः कामः यासु तथाभूताः, इतिहाससङ्कथाः पुरावृत्तोतवृत्तान्ताः, तस्थुः विद्यन्ते स्म / यस्य सौधस्य भित्तो कामस्य ब्रह्मणोऽपि पराभवादिप्रभावःचित्रकरेण अङ्कितः अवर्तत इत्यर्थः॥१९॥ जहाँपर दीवालोंके चित्रोंमें लिखित सम्पूर्ण क्रमवाली, ब्रह्माकी पुत्री (सरस्वती ) के साथ रमणेच्छारूप महान् साहससे हँसते हुए कामदेववाली, इतिहासकी विस्तृत कथा थी, ( अथवा-...."रमणेच्छा उत्पन्न करने ) से महासाहसी एवं (वैसा करनेसे अपने पराक्रमसफलता पर ) हँसते (आनन्दित होते) हुए कामदेववाली....... ) / [जिस प्रासादकी दीवालोसे वृद्धतम ब्रह्माकी भी पुत्रीके साथ रमणेच्छाकी कथा क्रमशः चित्रित है, जिसमें ब्रह्माके महासाहस (अविचारित कार्य) पर अपनी सफलतासे हँसता हुआ कामदेव भी 1. ""रसस्मरणीयस्वेन रूपणादुपकाखकार' इति 'जीवातुरिति म० म०. शिवदत्तशर्मामा।