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________________ नैषधमहाकाव्यम् / (दमयन्ती ) के साथ रात-दिन भोग करते हुए भी पाप ( दिवा-मैथुनादि जन्य दोष ) को नहीं प्राप्त किये क्योंकि विषयोंमें कृत्रिम एकाग्रता ज्ञानसे धोए गये ( अत एव स्वच्छ ) मनवालेको दूषित नहीं करती // 2 // न्यस्य मन्त्रिषु स राज्यमादरादारराध मदनं प्रियासखः / नैकवर्णर्माणकोटिकुट्टिमे हेमभूमिभृति सौधभूधरे / / 3 / / न्यस्येति / सः राजा, मन्त्रिषु अमात्येषु, राज्यं राज्यभारम् , न्यस्य निधाय, नैकवर्णाः अनेकवर्णाः, नार्थस्य न शब्दस्य सुप्सुपेति समासः। मणिकोटयः अस. यरत्नानि यस्मिन् तादृशम् , कुहिम बद्धभूमिः यस्मिन् तथोक्ते, हेमभूमिभृति सुवर्णमयभृ र वते, भृनः धिप / सौधः प्रसाद एवः, भूधरः पर्वतः तस्मिन् , पर्वतसदृशे अत्युच्चप्रासादे, प्रियासखः मीद्वितीयाः सन् , आदरात् आग्रहादित्यर्थः / मदनं कन्दर्पम् , आरराध सिषेवे, शच्या मेरौ इन्द्र इव स भेन्या सह तत्र सौधे रतिसुखमन्वभूदिति भावः // 3 // __वह ( राजा नल ) मन्त्रियों में राज्य ( सञ्चालनका भार ) देकर अनेक वर्णवाले करोड़ों रत्नोंसे जड़े हुए * फर्शवाले तथा सुवर्णमयीभूमिवाले प्रासादरूपी पर्वत अर्थात् पर्वततुल्य अत्युन्नत प्रासादपर प्रिया ( दमयन्ती) के साथ होकर कामदेवकी आराधना करने लगे। [जिस प्रकार इन्द्राणीसे युक्त इन्द्र करोड़ों मणियोंसे युक्त सुवर्णमयीभूमिवाले सुमेरु पर्वतपर कामाराधन ( रतिसुखानुभव ) करता है, उसी प्रकार नल भी मन्त्रियों को राज्यभार सौंपकर सुमेरुवत् प्रासाद में दमयन्तीके साथ कामसुख भोगने लगे] // 3 // वीरसेनसुतकण्ठभूषणीभूतदिव्यमणिपंक्तिशक्तिभिः / कामनोपनमदर्थतागुणाद् यस्तृणीकृतसुपर्वपर्वतः // 4 // अथ चतुर्विंशतिश्लोक्या सौधं वर्णयति-वीरेत्यादि / यः सौधः, वीरसेनसुतस्य नलस्य, कण्ठभूषणीभूतायाः गलदेशस्य आमरणस्वरूपायाः, दिव्यायाः, अली, किक्याः, मणिपंक्तेः रत्नमालिकायाः, शक्तिभिः अचिन्त्यप्रभावैः, कामनया सङ्कल्प. मात्रेणैव, उपनमदर्थता सम्प्राप्तेष्टवस्तुता; सैव गुणः उत्कर्षः तस्मात , तृणीकृतः अवधीरितः, सुपर्वपर्वतः सुराचलः, सुमेरुभूधरः इत्यर्थः / येन तादृशः, न केवलमो. प्रत्येन सम्पदाऽपि सुमेरोरधिकः सः इति निष्कर्षः // 4 // जिस (प्रासाद ) ने नल के कण्ठभूषण दिव्य ( अत्युत्तम ) मणियों ( दहेज में राजा भीमके दिये हुए चिन्तामणियों) की मालाको शक्तियों ( अलौकिक प्रभावों ) के इच्छामात्रासे मिलते हुए पदार्थरूपी गुणसे सुमेरु पर्वतको भी तृणवत् (तिरस्कृत ) कर दिया था। - [जो नलप्रासाद केवल ऊँचाईमें ही नहीं, किन्तु सम्पत्तिमें भी सुमेरुपर्वतसे श्रेष्ठ था, - - .. 'महाकुलकेने ति शेषः।
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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