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________________ 1148 नैषधमहाकाव्यम् / तत् तादृशम् , आकांकृष्टम् इत्यर्थः / धनुः चापन , अधिन विहितवान् , बाणेन पयाजितवानित्यर्थः / क ले राक्रम गात् प्राक् तौ यथा कामं कामसुखम् अन्वभूनाम् इति निष्कपः // 28 // विशाल वैसो ( धर्म परिपूर्ण ) नलकी राजधानी में प्रजाओंके पुण्योंसे ( अथवा-प्रजाओंके पुण्योंसे वैसो विशाल नल की राजधानी में ) बहुत (निरन्तर ) विघ्न प्राप्त करते हुए कलिका उस उद्यान में बहुत समय तक निवास हुभा अर्थात् उस उद्यान में उक्त प्रकारसे कलि बहुत दिनोंतक ठहरा। इसी बीच में ( कलिके वहां निवास करते रहने पर हो ) अन्तःकरण ( हृदय ) में अतिशय प्रसन्न कामदेव दमयन्ती तथा नलको सेवा (या-उन्हें पीडित या वशोभून) करने के लिए धनुष को छोरको कांग्रतक चढ़ाया। [ कलिके आक्रमण करने के पहले उन चिरविरही तथा उत्कण्ठित चित्तवाले दोनों (नल तथा दमयन्ती ) ने कामसुखको प्राप्त किया। यहांपर नल दमयन्तोके कामाराधनका प्रसङ्ग लाकर कविने अग्रिम सर्ग में वर्णनीय उनके सम्भोग-वर्णनको सूचित किया है। भविष्यमें होनेवाले कलिकृत नल-परा. भवसे नायकका अपकर्ष ( हीनता ) सूचित होता है, उसके अवर्णनीय होनेसे कविने उसे यहां पर नहीं कहा है ] // 218 // श्रीहर्ष कविराजराजिमुकुटालङ्कारहीरः सुतं श्रोडीरः सुषुवे जितेन्द्रिय चयं मामल्लदेवी च यम् / यातः समदशः स्वसुः सुसहशि छन्दःप्रशस्तेमहा काव्ये तद्भुवि नेषधोय चरिते सर्गो निसर्गोज्ज्वलः // 216 // श्रीहर्षमिति / स्वसुः सोदाः, एकत्त खात् एको दरवन्यपदेशः / छन्दःप्रशस्तेः छन्दोबद्वराज चरितवर्गनाप्रन्यस्य, स्वकतेरिति भावः। सुपहशि अत्यन्त तत्स. दृशे / तस्मात् श्रीहर्षात् भवतीति तद्भुवि / व्याख्यातमन्यत् // 219 // इति मल्लिनाथसूरिविवरिते 'जीवातु' समाख्याने सप्तदशः सर्गः समासः // 17 // कवीश्वर-समूहके..."किया, उसके रचित ( एक कविरचित ) होनेसे वहनरूप छन्दःप्रशस्ति (छन्दोबद्ध राजचरितका वर्णनात्मक ग्रन्थ, या-छन्दोरचनाके क्रमस्वरूपका निरूपण करनेवाला ग्रन्थविशेष, या-छिदप्रशस्ति अर्थात् 'छिद' नामक राजाको प्रशस्तिका वर्णनात्मक ग्रन्थ ) के सर्वथा (सब प्रकारसे ) समान, सुन्दर नलके "यह सप्तदश सर्ग समाप्त हुआ // 219 // यह 'मणिप्रभा' टोकामें 'नैषध-चरित' का सप्तदश सर्ग समाप्त हुआ // 17 // 1. 'छिन्दप्रशस्ते-' इति पाठान्तरम् /
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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