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________________ सप्तदशः सर्गः। 1135 ऐसा समझकर पहले ) प्रसन्न हुआ, (किन्तु ) बादमें उसको 'वामदेव' नामक देवता-विशेष ( अथवा पाठा०-'वामदेव'से दृष्ट 'साम'-विशेष) का उपासक जानकर ( 'वामदेवोपासने सर्वाः स्त्रिय उप्रसीदन्ति' इस श्रुतिके अनुसार धर्म-विरुद्ध काम करनेवाला नहीं होनेसे अपना विपक्षी धर्मात्मा मानकर ) खिन्न हो गया // 191 // वैरिणी शुचिता तस्मै न प्रवेशं ददौ भुवि / न वेदध्वनिरालम्बमम्बरे विततार च / / 162 // वैरिणीति / वैरिणी विरोधिनी, कलेरिति भावः / शुचिता लोकानां बाह्याभ्यः न्तरशुद्धता गोमयाद्यनुलेपनादिजनितभूमिशुद्धता च, तस्मै कलये, भुवि निषधः भूमौ, प्रवेशम् अन्तर्गमनम् न ददौ न दत्तवती, तथा अम्बरे च नगरसम्बन्धिनभसि च, वेदध्वनिः ब्रह्मघोषः, आलम्बम् आलम्बनम् , अवस्थानावकाशमित्यर्थः / न वित. तार न ददौ // 192 // (कलिकी) विरोधिनी पवित्रता ( लोगोंकी गोबर आदिके द्वारा लीपने-पोतनेसे बाहरी शुद्धि तथा रागदेषादि-शून्य होनेसे आभ्यन्तर शुद्धि) ने उस ( कलि ) के लिए पृथ्वीपर प्रवेश नहीं दिया अर्थात शुद्धिके कारण कलि पृथ्वीपर नहीं ठहर सका और ( आकाशतक गूंजती हुई ) वेदध्वनिने आकाशमें ( भी उस कलिके लिए ) आश्रय नहीं दिया // 192 // दर्शम्य दर्शनात् कष्टमग्निष्टोमस्य चानशे / जुघूर्णे पौर्णमासेक्षी सौमं सोऽमन्यतान्तकम् // 13 // अनन्तरश्लोकद्वयं 'प्रतिप्तमिति पूर्वैरुपेक्षितम् , तथाऽपि कचित् स्थितस्वात् व्याख्यायते-दर्शस्येत्यादि / सः कलिः, दर्शस्य दर्शयागस्य, तथा अग्निष्टोमस्य तदा ख्ययागविशेषस्य च, दर्शनात् अवलोकनात्, कष्टं महत् दुःखम् , आनशे प्राप तथा पौर्णमासं पूर्णमासेष्टिम् , ईक्षते पश्यति इति पौर्णमासेक्षी पौर्णमासयागदर्शी सन् , जुघणे बभ्राम, मूञ्छितप्रायोऽभूदित्यर्थः। तथा सौमं सोमयागञ्च, अन्तकं मृत्युम् , अमन्यत अबुध्यत, मरणयातनामिव यातनामन्वभूदित्यर्थः // 193 // __'दर्श' ( अमावस्या तिथिका यश ) तथा 'अग्निष्टोम' यश के देखनेसे कलिको कष्ट हुआ, 'पौर्णमास' (पूर्णिमाको होनेवाले यश ) को देखनेवाला वह ( कलि ) चकरा गया अर्थात् 'पौर्णमास' यज्ञको देखनेसे कलिको चक्कर आ गया और 'सोम' यज्ञको उसने मरण ही माना अर्थात् सोमयशसे मरणके समान यातनाको प्राप्त किया। [उन यशोंको देखनेसे कलिको वर्णनातीत कष्ट हुआ / लोकमें भी किसी व्यक्तिको पहले ज्वरादिजन्य कष्ट, तदनन्तर चक्कर (मूर्छा) और अन्तमें मरण होता है, सो कलिको भो क्रमशः वैसा पीड़ित होना ठीक ही है ] // 193 // 1. परं 'प्रकाश'कृता तु व्याख्यातमेवेति बोध्यम् /
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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