________________ 1064 नैषधमहाकाव्यम् / आप्त नहीं हैं तो उसके कथित महामारतादि ग्रन्थ-पुराणादि किस प्रकार प्रामाणिक हो सकते हैं ? अर्थात् वे सभी अप्रामाणिक तथा अश्रद्धय हैं ] // 64 // न भ्रातुः किल देव्यां स व्यासः कामात् समासजत् | दासीरतस्तदासीद्यन्मात्रा तत्राप्यदेशि किम् // 65 // कामचारी च स इत्याह-नेति / सः प्रसिद्धपारदारिकः, व्यासः सत्यवतीनन्दनः भ्रातुः विचित्रवीर्यस्य, देव्यां महिष्यां, कामात् स्मरावेगात् , न समासजत् किल ? न आसक्तः किम् ? / गुर्वेनुज्ञानान दोषश्चेत् तत्राह-तदा तत्काले, विचित्रवीर्यस्य पत्न्यां सुतोत्पत्तिकाले इत्यर्थः / दासीरतः दास्यां विदुरमातरि, रतः आसक्तः, आसीत् अभूत् , विदुरोत्पादायेति भावः / इति यत् तत्रापि दासीगमनेऽपि, मात्रा सत्यवत्या, अदेशि किम् ? आदिष्टः किम् ? अपि तु नादिष्ट इत्यर्थः / उभयत्रैव कामपरवशत्वात् प्रवृत्तस्य एवम्भूतदुश्चरित्रजनस्याप्ततमत्वासम्भवात् तद्वचनमप्रमाणमिति भावः // 65 // (तुमलोगोंका आप्ततम ) व्यास भाई (विचित्रवीर्य) की स्त्री में कामाधीन होकर नहीं आसक्त हुआ था क्या ? अर्थात् कामाधीन होकर ही विचित्रवीर्यकी पत्नीके साथ सम्भोग करनेमें व्यास आसक्त हुआ था, (योंकि यदि ऐसा नहीं होता और माताकी आशासे नियोग द्वारा विचित्रवीर्यकी खीमें सन्तानोत्पादनके लिए वह व्यास प्रवृत्त हुआ होता तो) उस (पुत्रके उत्पादनके ) समयमें ( वह व्यास ) जो दासी (विदुरकी माता ) में अनुरक्त हुआ, उसमें (विदुरमाताके साथ सम्भोग कर पुत्रोत्पादन करनेमें ) भी माताने आदेश दिया था क्या ? अर्थात् नहीं, ( अत एव जिस प्रकार दासी विदुरमाता) में अनुरक्त होने में व्यासका कामातुर होना ही कारण है, उसी प्रकार भाई विचित्रवीर्यकी स्त्रीके साथ सम्भोग करने में भी व्यासका कामातुर होना ही कारण है, माताकी आज्ञासे नियोग द्वारा पुत्रोत्पादन करना आदि नहीं ] // 65 // पौराणिक कथा-भीष्म पितामहने पिताके सुखके .निमित्त निषादराजकी कन्याके साथ विवाह करने के लिए आजन्म ब्रह्मचारी रहनेकी प्रतिज्ञा कर ली थी और राजा विचित्रवीर्य स्वयं सन्तानोत्पादनमें असमर्थ थे, इस प्रकार भविष्यमें 'सन्तान होनेकी कोई आशा नहीं होनेसे सन्तानोच्छेदके भयसे विह्वल सत्यवती (व्यासकी माता) ने व्यासको बुलाकर सन्तानोत्पादन करने के लिए आदेश दिया और उनकी आशा मानकर व्यासने भाई विचित्रवीर्यकी स्त्रीसे 'धृतराष्ट्र' तथा 'पाण्डु' नामके दो पुत्रोंको तथा उस विचित्रवीर्यकी 1. तदुक्तं मनुना-'देवराद्वा सपिण्डाद्वा स्त्रिया सम्यनियुक्तया। एकमुत्पादयेत्पुत्रं न द्वितीयं कथञ्चन // इति (मनु० 4 / 59) एतद्विषये विशेषजिज्ञासुभिर्मन्वर्थमुक्तावली मत्कृतो 'मणिप्रभा ख्यो मनुस्मृत्यनुवादो वा द्रष्टव्यः।