________________ षोडशः सर्गः। 1005 इस ( युवक ) के लिये क्रमको छोड़कर श्रेष्ठ व्यञ्जनको तुम क्यों नहीं देती हो ? पक्षा०... 'कहा-आलिङ्गन-चुम्बनादि बाह्य सम्भोगक्रमसे तुम्हारी मदनमन्दिर ( भगं) को देनेकी इच्छाको यह युवक नहीं सहन करता, अत एव तुम अधिक याचना करनेवाले अर्थात शीघ्र मैथुनेच्छुक इस (युवक ) के लिए श्रेष्ठ ( अथवा-अवर अर्थात् अधोभागस्थ ) तथा लोमरहित उस वराङ्ग (मदन-मन्दिर) को क्यों नहीं देती ?' [ यह युवक इतना. कामुक हो गया है कि तुम्हारे आलिङ्गनादिके क्रमसे मैथुनमें विलम्बको नहीं सहन कर सकता अतः तुम्हें आलिङ्गन-चुम्बनादि बाह्याङ्गसम्भोगके क्रमको छोड़कर इसके साथ शीघ्र मैथुन करना चाहिये ] // 96 / / समाप्तिलिप्येव भुजिक्रियाविधेर्दलोदरं वत्तु लयाऽऽलयीकृतम् | अलकृतं क्षीरवटैस्तदाऽश्नतां रराज पाकार्पितगैरिकश्रिया // 17 // समाप्तीति / तदा तत्काले, अश्नतां भुञानानां, जन्यामिति शेषः / दलोदरं कदलीपत्रादिभोजनपात्राभ्यन्तरं, पाकेन विविधसंस्कारकद्रव्यद्वारा पाकविशेषेण, अपिता सम्पादिता, गैरिकस्य शैलजरक्तवर्णधातुविशेषस्य, श्रीरिव श्रीः येषां तैरिति विभक्तिव्यत्ययेनान्वयः / पाकेन रक्तवर्णरित्यर्थः / तथा वत्तलया वत्त लैरिति विभक्तिव्यत्ययः / वृत्ताकारैः, वटानां वर्तुलत्वादिति भावः / क्षीरवटैः दुग्धपक्वमाषनि. प्पादितवटकाख्यपिष्टकविशेषैः, अलङकृतं शोभितं सत्, तदर्पणादिति भावः / पाकाथ रक्तवर्णसम्पादनार्थम् , अर्पितेन निक्षिप्तेन, गैरिकेण रक्तवर्णधातुविशेषेण, श्रीः रक्तकान्तिर्यस्यां तादृशया, तथा व लया वर्तलाकारया, वृत्ताकारः रक्तवर्णश्चिविशेषः लिपिशेषे क्रियते इति व्यवहारादिति भावः / भुजिक्रियाविधेः भुजधात्वर्थानुष्ठानस्य, भोजनव्यापारस्येत्यर्थः, समाप्तिलिप्या समाप्तिसूचकवर्णविशेषविन्यासेन लिप्यन्तरे प्रवृत्त्यभावात् , अन्यत्र-व्यञ्जनान्तरे रुच्यभावादिति भावः। आलयीकृतम् आस्पदीकृतं, चिह्नीकृतमित्यर्थः / दलोदरं तालपत्रादिलेख्यपत्राभ्यन्तरमिव, रराज शुशुभे, रक्तर्वर्णतादृशवटकैः शोभते स्म / ताहशवटकप्रदानानन्तरमेव जन्यानां तेषां व्यञ्जनान्तरभोजमप्रवृत्तिविनष्टेति भावः / अत्रोपमालङ्कारः // 17 // ____ उस समय भोजन करते हुए बरातियों के केले के पत्तेका मध्य भाग अधिक पकानेसे गेरुवत् लाल, भोजनके समाप्ति-सूचक लिखावटके समान क्षीरवटों ( दूध डालकर पकाये गये बड़ों ) से अलंकृत होकर ऐसा शोभित हुआ; जैसा लाल होने के लिए डाले गये गेरुसे शोभनेवाली समाप्तिसूचक लिपिसे ग्रन्थों के ताडपत्रादिका पत्र ( पन्ना ) शोभता है। [ इसका विशद अभिप्राय यह है कि जिस प्रकार ग्रन्थके अन्तमें 'छ // छ // छ / ' इत्यादि अक्षर या-॥०॥ // // ' इत्यादि गोलाकार चिह्नविशेष लिखनेसे उस ग्रन्थका पन्ना शोभता है और उससे उस ग्रन्थका समाप्त होना जाना जाता है, उसी प्रकार राजा भीमके यहाँ 1. 'तश्कमाम्' इति पाठान्तरम् /