________________ षोडशः सर्गः। दृष्ट्वा तस्य स्वसम्भोगाभिप्रायं परिज्ञाय तस्मिन्ननुरागात् सा पुलकिता अभूत् तत एव तत्प्रतिबिम्बमपि पुलकितं बभूवेति भावः // 84 // .... पात्रस्थ घृतको ग्रहण करने के इच्छुक किसी युवकने उसमें ( परोसनेवाली ) मृगनयनी के प्रतिबिम्बको देखकर उस (प्रतिबिम्ब ) के नीवी ( नाभिके नीचेकी वस्त्रग्रन्थि ) के भीतर हाथको रख दिया और वह प्रतिबिम्ब स्पष्ट रोमाञ्चयुक्त हो गया। [ उस युवकके प्रतिबिम्बित नीवीमें हाथको रखनेपर वह मृगनयनी उस युवकके अनुरागको समझकर स्वयं भी अनुरागयुक्त होनेसे रोमाञ्चित हो गयी और उसका रोमाञ्चित देह घृतमें प्रतिबिम्बित होनेसे वह प्रतिबिम्ब भी रोमाञ्चयुक्त हो गया ] // 84 // प्रलेहजस्नेहकृतानुबिम्बना चुचुम्ब कोऽपि श्रितभोजनस्थलः। ' मुहुः परिस्पृश्य कराङ्गुलीमुखैस्ततोऽनुरक्तैः स्वमवापितैर्मुखम् / / 85 // प्रलेहजेति / कोऽपि युवा, श्रितभोजनस्थलः प्राप्तभोजनप्रदेशः सन् , प्रलेहजस्नेहे लेह्यद्रव्यजातस्नेहरसे, कृतानुबिम्बनां प्राप्तप्रतिबिम्बा, प्रतिबिम्बितामित्यर्थः परिवेषिकाम् इति शेषः / मुहुः वारं वारं, परिस्पृश्य स्पृष्ट्वा, अङ्गुल्यप्रैरिति भावः / ततः स्पर्शात् अनन्तरं, स्व निजं, मुखम् आस्यम्, अवापितैः प्रापितैः, चुम्बितैः इत्यर्थः / अत एव अनुरक्तैः उष्णस्पर्शात् स्वभावाद्वाआरक्तैः स्निग्धैरिति च गम्यते कराङ्गुलीमुखैः हस्ताङ्गुल्यौः, चुचुम्ब चुम्बितवान् प्रतिबिम्बितां तामिति शेषः / मुहुः लेह्यलेहनव्याजेन सम्मुखस्थपरिवेषिकाप्रतिबिम्बानुस्पृष्टाङ्गुलिमुखचुम्बनात् एव तत्प्रतिबिम्बचम्बनात् सुखम् अन्वभूत् , तां प्रति अनुरागमदर्शयच्च इति भावः // 85 // किसी ( युवक ) ने मोजन-स्थलपर जाकर प्रलेह (चटनी आदि) के स्नेह ( तेल या घृत ) में प्रतिबिम्बित ( परोसनेवाली स्त्रीको, उस प्रलेय पदार्थकी उष्णतासे या स्वभावसे ही ) अरुणवर्ण ( पक्षा०-अनुरागयुक्त ) तथा अपने मुखमें डाले गये हाथकी अंगुलियोंके अगले भागोंसे बार-बार स्पर्शकर अनुरागसे ही चुम्बन कियाक्या ? / ( अथवा-किसी युवकने प्रलेहके स्नेहमें प्रतिबिम्बित (परोसनेवाली स्त्री) को भोजनका बहाना करता हुआ अपने मुखमें डाले गये, रक्तवर्ण ( या-सानुराग) हस्तांगुल्यग्रसे बार-बार स्पर्शकर अनुरागसे चूम लिया क्या ? / 'रिक्तैः'. पाठमें-उस. (प्रलेह पदार्थसे रहित तथा मुखमें डाले गये हस्तांगुल्यसे . चूम लिया। [ जो वह युवक चटनी आदि लेह्य पदार्थों में छोड़े गये अधिक घृत या तैलमें परोसनेवाली स्त्रीके प्रतिबिम्बको. अङ्गुल्यग्रसे छूता है, और उस लेह्य द्रव्यके चलानेसे प्रतिबिम्बके नष्ट होनेके भयसे चाटने के बहानेसे धीरे-धीरे अङ्गुल्यग्र को चूमता है। इसका. सारांश यह है कि उस स्त्रोके प्रतिबिम्बको छूकर अंगुलिको 1. '-घृता-' इति पाठान्तरम् / ...२.:-च्छलः' इति पाठान्तरम् / / 3. 'ततोऽनु रिक्तैः' इति पाठान्तरम् /