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________________ . षोडशः सर्गः। 665 बरातियोंने जिस प्रकार मांससे बने पदार्थमें बिना मांसके बने पदार्थका भ्रम किया और बिना मांसके बने पदार्थमें मांससे बने पदार्थका भ्रम किया; उस प्रकार चतुर रसोइयों (पाचकों) ने इन्हें (इन बरातियोंको) साधन द्रव्योंसे तैयार किये गये विचित्र अन्नको परिहासकर अर्थात् निरामिष वस्तु परोसनेके समय सामिष भोजन परोसकर तथा सामिष भोजन परोसनेके समय निरामिष भोजन परोसकर ( पाठा०-हँसा-हँसाकर ) भोजन कराया / / 80 // नखेन कृत्वाऽधरसन्निभां निभाधुवा मृदुव्यञ्जनमांसफालिकम् / ददंश दन्तैः प्रशशंस तद्रसं विहस्य पश्यन् परिवेषिकाऽधरम् / / 8 / / नखेनेति / युवा कश्चित् तरुणः मृदोः कोमलस्य, व्यम्जनमांसस्य तेमनीभूतमांसस्य, फालिकां खण्डिका निभात् भक्षणव्याजात् , नखेन नखरद्वारा, सब्छि। इति भावः, अधरसन्निभां परिवेषिकाधराकारां, कृत्वा विधाय, परिवेषिकायाः भोज्यप्रदायाः, अधरं निम्नोष्ठं, पश्यन् अवलोक्य, विहस्य हसित्वा, दन्तैः ददंश दष्टवान् , तस्य रसं स्वादं, प्रशशंस अहो अमृतकल्पमिति तुष्टाव चेत्यर्थः; तदधरबुद्धया इति भावः॥८१॥ किसी युवकने कोमल व्यञ्जन बने हुए मांस-खण्डको खानेके छलसे नखसे ( काटकर, परोसनेवाली स्त्रोके ) अधरके समान ( अरुण वर्ण होनेसे पहलेसे ही अधराकार रहनेपर भी नखसे रेखायुक्त अधराकार ) करके, परोसनेवाली (स्त्री) के अधरको देखता हुआ हँसकर (अधराकार उस मांसखण्डको ) दाँतोंसे काटा और उसके रस (मधुरता ) की प्रशंसा की। [ तुम्हारे अमृतरस भरे अधरको काटता हूं' ऐसा संकेत करते हुए उस मांस-खण्डमें उसके अधरका आरोपकर उसे काटा और उस स्त्रीसे उसकी मधुरताकी प्रशंसाकर अपने आशयको प्रकट किया ] // 81 // अनेकसंयोजनया तदा कृतं निकृत्य निष्पिष्य च ताहगर्जनात् / अमी कृताकालिकवस्तुविस्मयं जना बहु व्यञ्जनमभ्यवाहरन् / / 2 / / अनेकेति / तदा भोजनकाले, अमी जनाः भोक्तारः, अनेकेषां बहूनां संस्कारक. द्रव्याणां संयोजनया मेलनेन, तथा निकृत्य छित्त्वा, निष्पिष्य पिष्ट्वा च अर्जनात् वस्त्वन्तरसादृश्यसम्पादनात् हेतोः, ताहक तादृशं, विचित्रमित्यर्थः, कृतं निष्पादितं, यथा (तथा) कृतः सम्पादितः, आकालिकेषु अकालभवेषु, तत्कालदुर्लभेषु इत्यर्थः, वस्तुषु पदार्थेषु, विस्मयः अद्भुतता येन तत् तादृशं, बहु अनेकं व्यन्जनं शाकमांसा. दिकम्, अभ्यवाहरन् अभुञ्जत // 82 // उस ( भोजनके ) समयमें इन लोगों ( बरातियों) ने अनेक (मिर्च लौंग आदि पदार्थों ) के संयोगसे तथा काटकर (छोटे-छोटे टुकड़े कर ) और पिसकर दूसरे वस्तुओं की समानता प्राप्त करनेवाले बहुतसे व्यञ्जनोंको भोजन किया // 82 // 1. 'सनिभा युवा द्विधा मृदु' इति पाठान्तरम् / 2. 'तथाकृतेः' इति पाठान्तरम् /
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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