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________________ 682 नैषधमहाकाव्यम् / शिविल हाथ किये हुए ...) / [ पानी देनेके लिए झुकी हुई किसी स्त्रीके मुखको चुम्बन करनेके लिए किसी साहसिक व्यक्तिने चुम्बनासक्त होनेसे हाथकी अङ्गुलियोंको ढीला कर दिया और इस प्रकार उसके पैरपर पानी गिरने लगा और वह अवसर देखने लगा कि उस पंक्ति में बैठे हुए या वहां घूमनेवाले लोगोंकी दृष्टि इधर-उधर हो तो मैं इस स्त्रीके मुखका चुम्बन कर लूं / 'प्रकाश' के अनुसार उक्त अवसरको देखकर उस स्त्रीके मुखका चुम्बन कर लिया। ठीक ही है-कामान्ध पुरुष क्या नहीं करते ? अर्थात् कामान्ध व्यक्ति अत्यधिक अनुचित कार्य भी कर सकते हैं ] // 58 // युवानमालोक्य विदग्धशीलया स्वपाणिपाथोरुहनालनिर्मितः / श्लथोऽपि सख्यां परिधिः कलानिधौ दधावहो ! तं प्रति गाढबन्धताम् / / युवानमिति / विदग्धशीलया प्रगल्भस्वभावया, कयाचित् तरुण्येति शेषः / युवानं कमपि तरुणम् , आलोक्य दृष्ट्वा, कलानिधौ कलानां शिल्पानां, चतुःषष्टिप्रकारगीतवाद्यादिरूपाणामित्यर्थः / निधी आधारभूतायां, सख्यां सहचर्याम् , अन्यत्रसख्यां सखारूपे कलानिधौ चन्द्रे / 'कला शिल्पे विधोरंशे' इत्यभिधानात् / स्वपाणिपाथोरुहनालाभ्यां निजभुजरूपपद्मनालाभ्यां, निर्मितः कृतः, उक्तयुवकालिङ्गना. भिलाषरूपनिजभावसूचनार्थमिति भावः। परिधिः परिवेष्टनं, सखीपरिरम्भ इति यावत् / अन्यत्र-परिधिः परिवेषः, श्लथः शिथिलः सन्नपि, तं युवानं प्रति, गाढबन्धतां सुदृढालिङ्गनतामिति यावत् / दधौ पुपोष, तस्य यूनः गाढालिङ्गानसुखं तस्मादभूदित्यर्थः / अहो! सख्यालिङ्गनात् तस्य यूनः गाढालिङ्गनसुखोत्पादेन कार्यकरणयोयधिकरण्यात् शिथिलालिङ्गनात् विरुद्धस्य गाढबन्धत्वस्योत्पादाच्च आश्चर्यम् / अत एवासङ्गतिविषमालङ्कारयोः सङ्करः। 'कार्यकारणयोर्भिन्नदेशतायाम. सङ्गतिः। बिरुद्धकार्यस्योत्पत्तिः' इति च लक्षणात्। अत्र रतिरहस्योक्तिः:-'उत्सङ्गसङ्गताऽपि प्रियसख्यां विविधविभ्रमं तनुते / भावादङ्कगतं शिशुमालिङ्गति चुम्बति ब्रते च // इति // 59 // प्रगल्भ स्वभाववाली ( या चतुर, किसी स्त्रीने किसी ) युवकको देखकर 64 कलाओं के निधि अर्थात् जाननेवाली सखीमें पक्षा०-सखीरूप चन्द्रमामें अपने बाहुरूप कमलनाल रचे गये शिथिल भी परिधि ( आलिङ्गन, पक्षा०-घेरे ) को उस युवकके प्रति ( लक्ष्य करके) गाढ़ बन्धनयुक्त कर लिया, अहो ! ( आश्चर्य है ) / [ चन्द्रमामें परिधि = घेरेका होना उचित है / मुझे गाढालिङ्गन करनेकी अभिलाषावाली इसने सखीका गाढालिङ्गन किया, अत एव इसने मेरा ही गाढालिङ्गन किया ऐसा जानकर उस सखीको गाढालिङ्गन करनेसे उस युवकको गाढालिङ्गन करनेका सुख मिला। सखीको गाढालिङ्गन करनेसे युवकको गाढालिङ्गनका सुख मिलनेसे कार्य-कारणका समानाधिकरण नहीं होनेसे तथा शिथिल आलिङ्गनके विरुद्ध गाढालिङ्गनके उत्पन्न होनेसे आश्चर्य है ] // 59 //
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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