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________________ 680 नैषधमहाकाव्यम् / कामदेवकी शिल्प अर्थात् अतिशय सुन्दरीके उपचार ( कटाक्षादिद्वारा अपने अनुरागको संकेतित करनेवाले प्रेमपूर्वक देखने ) में उत्कण्ठित सुन्दर नेत्रोंवालो वराङ्गना आदिने दर्शकोंको बार-बार हंसाया ) / [ यहाँ तक ( 16 / 49-54) कामरहित परिहासका वर्णन किया गया है, अब यहांसे 'न षड्विधः " ( 16 / 108)' श्लोक तक कामसहित परिहासका वर्णन किया जा रहा है ] // 55 // तिरोबलद्वक्त्रसरोजनालया स्मिते स्मितं यत् खलु यूनि बालया / तया तदीये हृदये निखाय तत् व्यधीयतासम्मुखलक्ष्यवेधिता / / 56 / / तिर इति / तिरोबलन् तिर्यप्रेरयन् , वक्त्रसरोजनालः मुखकमलमृणालः, कण्ठः इति यावत् , यया तादृशया, तिर्यक परिवर्तितकन्धरया, बालया कयाचित् युवत्या, यूनि कस्मिंश्चित् तरुणे, स्मिते स्मितवति सति कर्तरि क्तः / यत् स्मितं खलु हसितं किल, लज्जया पराङ्मुखीभूय यत् हास्यमकारि इत्यर्थः, भावे क्तः / तया बालया, तदीये हास्यकारियुवसम्बन्धिनि, हृदये चेतसि, तत् स्मितं, निखाय गाढं प्रवेश्य, असम्मुखम् अनभिमुखं, पार्श्वदेशावस्थितमिति यावत् , यत् लक्ष्यं वेध्यं, तद्वेधिता तद्वेधित्वं, स्वस्या इति शेषः / व्यधीयत विहिता, तत् स्मितं तस्य पार्शवस्थितलक्ष्यवेधौ शरो जातः इत्यर्थः // 56 // (वरपक्षीय ) युवकके मुस्कुरानेपर अपने मुखकमलनाल ( गर्दन ) को घुमाकर बालाने जो मुस्कुराया, उस बालाने उस युवकके हृदयमें वह मुस्कुराना ही मानो असन्मुख ( पराङमुख या पार्श्वभागस्थ ) निशानेको मारनेवाला बना दिया। ( जोपराङ्मुख हो निशानेको मारता है, वह चतुर निशाना मारनेवाला समझा जाता है। प्रकृतमें पराङ्मुखी होती हुई भी उस बालाने मुस्कुरानेवाले युवकको देख लज्जासे गर्दनको फेरकर जो मुस्कुरा दिया, उससे वह युवक 'यह मुझपर अनुराग करती है, इसी कारण अपने प्रेमदर्शनार्थ मेरे मुस्कुरानेपर लज्जावश मुख फेरकर इसने मुस्कुराया है क्योंकि मुस्कुराना तथा लज्जित होना ये ही दो कार्य अनुरागके सूचक होते हैं। ऐसा समझ उसपर आसक्त होकर कामपीडित हो गया। वह बाला नायिका होने के कारण ही मुखनाल ( कण्ठ ) को फेरकर मुस्कुरायी, यदि प्रौढा नायिका होती तो सामने मुख करके ही मुस्कुराती; क्योंकि बाला नायिकामें लज्जाका भाव रहता है और प्रौढा नायिका वह नहीं रहता] // 56 // कृतं यदन्यत् करणोचितत्यजा दिक्षु चक्षुर्यदवारि बालया। हृदस्तदीयस्य तदेव कामुके जगाद वार्त्तमखिलां खेले खलु / / 57 / / कृतमिति / करणोचितं क्रियाह, त्यजतीति तादृशया करणोचितत्यजा कर्त्तव्यमकुर्वन्त्या इत्यर्थः, त्यजे क्विप। बालया पूर्वोक्तया तरुण्या, अन्यत् अकर्तव्यं, यत् कृतम् अनुष्ठितं, तथा दिदृतु दर्शनोत्सुकं, चक्षुः स्वदृष्टिः, यत् अवारि वारितं, द्रष्टव्यात् 1. 'खलम्' इति पाठान्तरम् /
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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