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________________ षोडशः सर्गः। 653 विदर्भजायाः करवारिजेन यन्नलस्य पाणेरुपरि स्थितं किल / विशङ्कय सूत्रं पुरुषायितस्य तद्भविष्यतोऽस्मायि तदा तदालिभिः।।१५।। विदर्भजाया इति / विदर्भजायाः वैदाः , करवारिजेन पाणिकमलेन, नलस्य पाणेः उपरि स्थितं किलेति यत् / भावे क्तः / तत् उपरि अवस्थानं, भविष्यतः पुरुषायितस्य विपरीतसुरते पुरुषवदाचरितस्य, सूयते सूच्यते अनेन इति सूत्रं सूचकं, विशङ्कय विभाव्य, तदा तदालिभिः भैमीसखीभिः, अस्मायि मन्दम् अहासि / स्मयतेर्भावे लुङ, चिणि वृद्धया अयादेशः / विपरीतसुरते पुरुषोपरि स्त्रियः शयनेन पुरुष करोपरि स्त्रीकरः सम्भवति इति पुंभावमुत्प्रेक्ष्य स्मितं कृतमिति भावः // 15 // दमयन्तीका करकमल जो नलके हाथके ऊपर रखा गया, उसे उस समय भविष्य में (विवाहके बाद ) पुरुषाचरण के सूत्र ( सूचित करनेवाला ) मानकर हम दमयन्तीकी सखियों ने मुस्कुरा दिया। [विपरीत रतिमें पुरुषके हाथके ऊपर स्त्रीका हाथ रहता है, अत एव दमयन्तीके हाथको नलके हाथके ऊपर रखा हुआ देखकर उसकी सखियोंने उसी विपरीत रतिकालकी अवस्थाका स्मरणकर मुस्कुरा दिया // दमयन्तीने अपने हाथको नलके हाथ पर रक्खा ] // 15 // सखा यदस्मै किल भोमसंज्ञया स यक्षसख्याधिगतं ददौ भवः / ददे तदेष श्वशुरः सुरोचितं नलाय चिन्तामणिदाम कामदम् / / 16 / / अथ एकविंशतिश्लोक्या यौतकदानं वर्णयति, सखेत्यादि। सः प्रसिद्धः, भवः भगवान् ईश्वरः, यक्षसख्याधिगतं यक्षेण सह यत् सख्यं बन्धुत्वं, तेनाधिगतं प्राप्त कुबेरमैत्रीलब्धं कुबेरात् लब्धमित्यर्थः / 'कुबेरस्यम्बकमखो यक्षराड्' इत्यमरः। यत् चिन्तामणिदाम चिन्तामणिघटितमाल्यं, भीम इति संज्ञया नाम्ना हेतुना, सखा स्वनामसादृश्यात् मित्रमिति बुद्धया इत्यर्थः। 'व्योमकेशो भवो भीमः' इत्यमरः / अस्मै भीमनृपाय, ददौ स्वकीयभीमनामधारणात् बन्धुस्वसूत्रेणेति भावः। सुरोचितं देवतायोग्यं, कामदं कामदुधं, तत् चिन्तामणिदाम, श्वशुरः पत्न्याः पिता, एष भीमभूपतिः, नलाय जामात्रे, ददे // 16 // (अब यहाँसे 'न तेन वाहेपु-' (16 / 34) तक दहेज देने का वर्णन करते हैं-) 'भीम' नामसे मित्र शिवजीने यक्ष अर्थात् कुबेरको मित्रतासे मिली हुई जिस (चिन्तामणिमाला ) को इस ( 'भीम' राजा) के लिए दिया था, इस श्वसुर (राजा भीम) ने कामना को देने अर्थात् पूर्ण करनेवाले देवों ( पाठा०-पुत्री दमयन्ती ) के योग्य उस 'चिन्तामणि' नामक मालाको नलके लिए दिया। [शिवजीका नाम 'भीम' है तथा दमयन्तीके पिताका भी नाम 'भीम' है, अतएव नाममात्र की मित्रताके कारण शिवजीने मित्र कुबेरसे प्राप्त देवधार्य 'चिन्तामणि' नामक मालाको मित्रभूत इस 'भीम' राजाके लिए दिया था, उसे 1. 'सुतोचितम्' इति पाठान्तरम् /
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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