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________________ 652 नैषधमहाकाव्यम् / फलमुत्तरम्' इत्यमरः। तर्क कञ्चित् रहस्य, व्यधात् अकार्षीत् / तं तर्कमेवाह-यत् यतः, एषः नलः, भीमजायाः भैम्याः, अधरमेव मधु माक्षिक, पास्यन् धास्यन् , अधरमधुपानं करिष्यति इत्यर्थः / तत एव तदा तस्मिन् काले, मिषेण मधुपर्कपानव्याजेन, पुण्याह विधि कर्मादौ कर्त्तव्यं पुण्याहकर्म एव, अकरोत् / विवाहदिनरूपपुण्याहे मधुपर्कपानच्छलेन भाविन्या अधरमधुपानक्रियायाः शुभारम्भं चकारेत्यर्थः / माङ्गल्यकृत्येषु आदौ पुण्याहक्रिया प्रसिद्धा एव / अत्र सापह्नवोत्प्रेक्षा // 13 // ___ उस ( नल ) ने ( राजा भोमके द्वारा ) दिये गये मधुपर्कका जो आस्वादन किया, वह ( मधुपर्कास्वादन कार्य ) ( भविष्यकालके ) परिणामको देखनेवालेके लिए यह तर्क कराया कि-'यह नल भविष्यकाल ( विवाह के बाद ) में जो दमयन्तीके अधरका पान करेंगे, इसीसे उस समयमें ( मधुपर्क पान करनेके ) छलसे पुण्याह कर्मको किया है। [ किसी कार्यकी सिद्धिके लिए उसके प्रारम्भमें ( मधु दही और घी मिले हुए मधुरत्रयरूप ) मधुपर्कका पान करना शास्त्रोक्त विधि है, अतएव विवाह कार्यके आरम्भमें राजा भोजके दिये हुए मधुपर्कका पान करते हुए नलको देखनेवालोंने तर्क किया कि-भविष्यमें दमयन्तीके अधर-पानरूपी कार्यकी सिद्धिके लिए नलने उस कार्यके आरम्भमें मधुपर्कपानके बहाने से पुण्याह विधिको किया है ] // 13 // वरस्य पाणिः परघातकौतुकी वधूकरः पङ्कजकान्तितस्करः / सुराज्ञि तौ तत्र विदर्भमण्डले ततो निबद्धौ किमु कर्कशैः कुशैः / / 34 / / वरस्येति / वरस्य नलस्य, पाणिः परघातकौतुको शत्रुवधलम्पटः परहिंसालोलु पश्च, वधूकरः भैमीपाणिः, पङ्कजकान्तेः पद्मश्रियः, तस्करः चौरश्च / 'तबृहतोः करपत्योः-' इत्यादिना सुट तलोपश्च / ततः पूर्वावराधात् , एको हिंस्रः अपरस्तस्कर इत्यपराधात् हेतोरित्यर्थः / तौ वधूवरकरौ, शोभनो राजा यस्य तस्मिन् सुराज्ञि राजन्वति, तत्र तस्मिन् , विदर्भमण्डले विदर्भराज्ये, कर्कशैः कुशः निबद्धौ संयती, किमु ? धार्मिकराज्ये दुष्टा बध्यन्ते इति भावः / देशाचारप्राप्तस्य वधूवरयोः कुश. सूत्रेण करबन्धनस्य अपराधहेतुकत्वमुत्प्रेक्ष्यते // 14 // ___ वर ( नल ) का हाथ दूसरों अर्थात् शत्रुओं को मारनेका कुतूहली (शत्रुओंका घातक) है, तथा बहू ( दमयन्ती ) का हाथ कमलकी शोभाको चुरानेवाला है, इस कारण (क्रमशः हिंसक तथा चोर होनेसे ) उन दोनोंको अच्छे राजावाले विदर्भराज्यमें कर्कश कुशाओंसे बाँधा गया है क्या ? / [ जो किसोकी हिंसा या चोरी करते हैं, उन्हें अच्छे राजावाले राज्यमें कठिन बेड़ियोंसे बांधकर दण्डित किया जाता है, अत एव श्रेष्ठ राजावाले इस निषध देशमें परघातक नलबाहु तथा परसम्पत्तिचौर दमयन्तीबाहुको कर्कश कुशाओंसे बांधकर दण्डित करनेकी कल्पना की गयी है / देशाचारानुसार नल तथा दमयन्तीकी भुजाओंमें कुश बांधे गये] // 14 //
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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