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________________ 650 नैषधमहाकाव्यम् आदि ) क्रूर भावसे रहित तथा बढ़ते हुए कोलाहलबाला समागम (राजा भीमके ) द्वारपर हुआ। [ राजा नल तथा भीमकी सेनाएं राजा भीमके द्वारपर परस्पर में मिल गयीं और प्रेमभावके कारण युद्ध आदि नहीं हुआ, किन्तु सबोंके बोलनेसे बड़ा कोलाहल हुआ ] // 9 // निवेश्य बन्धूनित इत्युदीरितं दमेन गत्वाऽद्धपशे कृताहणम् / विनीतमा-द्वारत एव पद्गतां गतं तमैक्षिष्ट मुदा विदर्भराट् / / 10 / / निवेश्येति / दमेन भीमात्मजेन, गत्वा प्रत्युद्गम्य, बन्धून् जामातृबन्धून्, निवेश्य उपवेश्य, इत इति उदीरितम् अस्यां दिशि आगम्यताम् इति प्रार्थितम्, अर्द्धपथे अर्द्धमार्गे, कृताहणं कृतपूजनं, विनीतम् अनुद्धतम्, आ-द्वारतः द्वारम् आरभ्य, पादाभ्यां गच्छति इति पद्गः, तत्तां पद्गतां द्वारदेशे रथादवतीय पादचारित्वम् / 'पादस्य पदाज्यातिगोपहतेषु' इति पादस्य पदादेशः / गतं त नलं, विदर्भराट भीमः, मुदा हर्षेण, ऐक्षिष्ट अद्राक्षीत् // 10 // विदर्भनरेश ( भीम ) ने (भीम-कुमार ) दमके द्वारा आगवानी करके ( नलके) बन्धुओंको बैठाकर ( पाठा०-भीमके द्वारा ही सामने ) जाकर अपने या नलके बन्धुओंको निर्देशकर अर्थात् भेजकर 'इधरसे आइये' ऐसा कहे गये तथा दम (भीमकुमार ) के द्वारा आधे मार्गमें अयं पाद्य आदिसे पूजित, विनीत और द्वारकी सीमासे ही पैदल चलते हुए उस (नल ) को हर्षसे देखा // 10 // अथायमुत्थाय विसार्य दोयुगं मुदा प्रतीयेष तमात्मजन्मनः / सुरस्रवन्त्या इव पात्रमागतं धृताभितोवीचिगतिः सरित्पतिः / / 11 / / अथेति। अथ नलेक्षणानन्तरम्, अयं विदर्भराट, उत्थाय दोयुगं बाहुद्वयं, विसार्य प्रसार्य, आगतं सम्मुखमुपस्थितम्, आत्मजन्मनः आत्मजायाः भैम्याः, पात्रं योग्यं वरं, तं नलं, पृता अवलम्बिता, अभितः उभयपार्श्वतः वीचिगतिः तरङ्गप्रसारः यस्य सः तादृशः, सरित्पतिः समुद्रः, सुरस्रवन्त्याः सुराणां देवानां, स्रवन्त्याः नद्याः, भागीरथ्याः इत्यर्थः / 'अथ नदी सरित् स्रवन्ती निम्नगाऽपगा' इत्यमरः। आगतं पात्रं तोरद्वयमध्यवर्ति प्रवाहम् इव / 'पात्रम् स्रवादी पणे च भाजने राजमन्त्रिणि / तीरद्वथान्तरे योग्ये' इति मेदिनी / मुदा हर्षेण, प्रतीयेष प्रत्यच्छत् , आलिलिङ्गेत्यर्थः॥ इस ( नलको देखने ) के बाद इस ( राजा भीम ) ने दोनों भुजाओंको फैलाकर आये हुए पुत्री ( दमयन्ती ) के योग्य उस ( नल ) को उस प्रकार आलिङ्गन किया, जिस प्रकार दोनों ओर तरङ्गोंवाला समुद्र आये हुर गङ्गाके प्रवाहक। आलिङ्गन करता है // 11 // यथावदस्मै पुरुषोत्तमाय तां स साधुलक्ष्मी बहुवाहिनीश्वरः / शिवामथ स्वस्य शिवाय नन्दिनीं ददे पतिः सर्वविदे महीभृताम् // 12 / / 1. 'निवेश्य' इति पाठान्तरम् / 2. 'आ द्वारतः' पदद्वयम्, इति 'प्रकाशः'। 3. '-ततिः' इति पाठान्तरम् / 4. 'नन्दनाम्' इति पाठान्तरम् /
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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