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________________ - नैषधमहाकाव्यम् / अथोभयसाधारणं वरमाह, भवानिति / भवानपि त्वञ्च, त्वद्दयिताऽपि दमयन्त्यपि च, शेषे आयुरवसाने, शिवा च शिवश्व ताभ्यां शिवाभ्यां पार्वतीपरमेश्वराभ्यां सह, 'पुमान् स्त्रिया' इत्येकशेषः, सयुजो भावः सायुज्यं तादात्म्यम्, आसादयतं प्राप्नुतम् / आमुष्मिकफलोक्तो कारणमाह-हि यतः, प्रेत्य लोकान्तरं गत्वा, अस्मि अहं, कीहक भवितास्मि कीदृशो भविष्यामि, इति चिन्ता जन्तोः अन्तः मनसि, सन्तापं तनुते, तन्निवृत्त्यर्थेयमुक्तिरिति भावः // 71 // ___ आप तथा आपकी प्रियतमा अर्थात् दमयन्ती भी ( भूलोक-भोगनिमित्तक कर्मके ) अन्तमें शिव तथा पार्वतीके साथ तादात्म्यको प्राप्त करें, क्योंकि मरने के बाद '( मैं ) क्या होऊंगा अर्थात् मैं किस योनिमें जाऊंगा ?? यह चिन्ता प्राणीके अन्तःकरणमें सन्ताप बढ़ाती है। [ अत एव मुझसे यह वरदान पाकर तुम्हें भावी जन्मके लिए सन्देह-निवृत्ति होनेसे मनके तापकी शान्तिरूप श्रेष्ठ लाभ होगा ] // 71 // तवोपवाराणसि नामचिह्न वासाय पारेऽसि पुरं पुराऽऽस्ते | निर्वातमिच्छोरपि तन्न भैमीसम्भोगसङ्कोचभियाऽधिकाशि / / 72 / / तवेति / किञ्च, तव वासाय निवासाय, उपवाराणसि वाराणस्याः समीपे, 'अव्ययं विभक्ति-' इत्यादिना सामीप्यार्थे अव्ययीभावः, पारेऽसि असिनाम नदी तस्याः पारे, 'पारे मध्ये षष्ठया वा' नामचिह्नं त्वन्नामाङ्कितं, पुरं नलपुरं, पुग आगामिनि, सत्वरमित्यर्थः, 'निकटागामिके पुरा' इत्यमरः, आस्ते आसिष्यते, भविष्यतीत्यर्थः, आसेभविष्यदर्थे 'यावत्पुरानिपातयोर्लट्' इति भविष्यदर्थे लट तत् पुरं, निर्वातुं मोक्तुम्, इच्छोः मुमुतोरपि, तवेति शेषः, भैमीसम्भोगस्य सङ्कोचात् प्रतिबन्धात् , भिया अधिकाशि काश्यां, न, भविष्यति शेषः / मुमुक्षुरपि त्वं यावजीवं भैम्या सह नलपुरे विहर, अन्ते काश्यां शिवसायुज्यमाप्नुहीत्यर्थः / / 72 // तुम्हारे निवासके लिए काशीके समीप 'असी' ( नामकी नदी ) के पारमें तुम्हारे नाम से चिह्नित पुर अर्थात् 'नलपुर' भविष्यमें होगा / मुक्तिके इच्छुक भी तुम्हारे उस पुर (नल पुर ) को दमयन्तीके साथ सम्भोगके सङ्कोचके भयसे ( मैंने ) काशी में नहीं किया है। [ यद्यपि वर्तमानमें तुम्हारा निवासस्थान अन्यत्र है, किन्तु भविष्यमें काशीके पास असीनदीके पारमें 'नलपुर' नामक तुम्हारी राजधानी होगी मुक्ति-अभिलाषी तुमको दमयन्तीके साथ सम्भोग करने में सङ्कोच ( कभी ) करनेका भय होगा इस कारणसे मैंने काशी में तुम्हारी राजधानी नहीं बनाकर काशीके पास ही असी नदी के पारमें बनायी है, अतः उस राजधानीमें दमयन्तीके साथ पूर्णतः सम्भोग-सुख करके अन्तमें तुम दोनों दम्पति क्रमशः शिव-पार्वतीके सायुज्यको प्राप्त करना] // 72 // धूमावलिश्मश्रु ततः सुपर्वा मुखं मखास्वादविदां तमूचे / कामं मदीक्षामयकामधेनोः पयायतामभ्युदयस्त्वदीयः / / 73 / / /
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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