________________ नैषधमहाकाव्यम् / इत्यर्थः, अत एव भयात् प्रकम्पितश्चकम्पे। अत्र पाटलस्तबके मदनतूणीरभ्रमात प्रान्तिमदलकारः। 'कविसंमतसादृश्याद्विषये विहितात्मनि / आरोप्यमाणानुभवो यत्र स भ्रान्तिमान्मतः॥ इति लक्षणात् // 95 // वे ( नल) युवक मिथुनके हृश्यमें प्रवेश करनेके योग्य पुष्पोंसे पूर्ण मध्य मागवाले पाटला गुच्छको भयसे अन्धी ( विचारशन्य ) बुद्धिसे कामदेवका तरकस समझकर कम्पित हो गये। [ नकने पाटलाके गुच्छको पुष्पोंसे परिपूर्ण देखकर समझा कि यह विरही युवक-दम्पति के हृ दयको वेधनेवाला कामदेव के बाणों से भरा हुआ तरकस है, अतः वे स्वयं भी विरही होनेके कारण उसके मयसे कम्पित हो गये। भयके कारण विचार-शक्तिके नष्ट होनेसे नलने वैसा समझा] // 95 // मुनिद्रुमः कोरकितः शितिद्युतिर्वनेऽमुनाऽमन्यत सिंहिकासुतः। तमिस्रपक्षत्रुटिकूटभक्षितं कलाकलापं किल वैधवं वमन् / / 16 // मुनीति / अमुना नलेन वने कोरकितः सजातकोरकः शितिद्युतिः पत्रेषु कृष्ण. छविः मुनिगुमोऽगस्त्यवृक्षः तमित्रपक्षे त्रुटिकूटेन ज्यव्याजेन भक्तिम् मस्तित्वे कुतः पय? इति भावः / अत्र कूटशब्देन क्षयोपह्नवेन भरणारोपादपह्नवभेदः / वैधवं चन्द्रसम्बन्धि विधुः सधांशुः शुभ्रांशुरि'त्यमरः। कलाकलापलासमूह वमन्नुगिरन् सिंहिकासुतो राहुरमन्यत किल खलु ? अत्र कोरकितशितद्युतित्वाभ्यां मुनिगमस्येन्दुकलाकलापवमनविशिष्टराहुस्वोस्प्रेक्षा, सा चोक्तापहवोस्थापितेति सरः / / 96 // इस ( नल) ने वनमें कोरकित कृष्णवर्ण अगस्त्यको कृष्णपक्षमें चन्द्र कलाक्षयके कपटसे मक्षित चन्द्रकलाको वमन करते ( उगलते ) राहु के समान माना / ( अथवा-.......... अन्धकारमें कपटपूर्वक खाये गये पशु आदिको वमन करते हुए सिंह के बच्चे के समान माना)। [प्रथम मर्थमें - यह राहु चन्द्रमाको खा गया था, अतएव मुझे सन्ताप नहीं होता है किन्तु अब पुनः चन्द्रमाको यह वमन कर रहा है, अतएव मुझे यह चन्द्रमा सन्तप्त करेगा, ऐसा समझकर वे डर गये। द्वितीय अर्थमें अन्धकारमें पशुको खाकर उसे उगलते हुए सिंहको वनमें देखनेसे मय होना उचित ही है। अगस्त्यको कोरकयुक्त देख उसके कामोद्दीपक होनेसे विरही नक हर गये ] // 96 // 'पुरोहठाक्षिप्ततुषारपाण्डरच्छदा' वृतेर्वीरुधि नद्धबिभ्रमाः / मिलन्निमीलं विदधुविलोकिता नभस्वतस्तं कुसुमेषु केलयः // 7 // पुर इति / पुरोऽग्रेहठात् झटिस्याचिप्ता आकृष्टातुषारेण हिमेन पाण्डराणां छदानां पत्राणां तुषारवत् पाण्डरस्य छदस्याच्छादकस्य वस्त्रस्य चावृतिरावरणं येन तस्य नमस्वतो वायोः वीरुषि लतायां नद्धाः अनुबद्धा विभ्रमा भ्रमणानि विलासाश्च 1. 'पुरा इति' पाठान्तरम्। 2. 'च्छदा वृते-' इति पाठान्तरम् / 3. 'बद्ध-' इति पाठान्तरम् / 4. 'ससृजु-' इति पाठान्तरम् /