________________ 452 नैषधमहाकाव्यम् / से वरुण भी उनके हृदयमें निवास करते हैं, उनमें वडवाग्निके द्वारा समुद्रोंको उतना सन्ताप नहीं होता, जितना कमसन्तप्त वरुणके द्वारा होता है, अतः बडवाग्निकी अपेक्षा विरहाग्नि ही अधिक दाहक है / लोकमें मी सज्जन दास दु.खित या शोकसन्तप्त स्वामीको देखकर अधिक दु:खित या सन्तप्त होते हैं ] / / 81 // यत्प्रत्युत त्वन्मृदुषाहुवल्लीस्मृतिस्रजं गुम्फति दुर्विनीता | ततो विधत्तेऽधिकमेव तापं तेन श्रिता शैत्यगुणा मृणाली // 2 // यदिति / तेन वरुणेन श्रिता सन्तापशान्तये सेविता शैत्यमेव गुणो यस्याः सा शैत्यगुणा शीतलैकस्वभावेत्यर्थः / तथापि दुर्विनीता प्रतिकूलचारिणी मृणाली बालमृणालम् / अरूपत्वविवक्षायां स्त्रीलिङ्गता / 'स्त्री स्यात्काचिन्मृणाल्यादिविवक्षापचये यदि' इत्यमरः / “जातेरस्त्रीविषयादयोपधात्" इति डीए / यद्यस्मात्तव मृदुवाहू वल्ल्याविव तयोः स्मृतीनां नजं मालां गुम्फति रचयति अजस्रं स्मारयतीत्यर्थः / ततस्त्वद्वाहुस्मारकत्वाद्धेतोः प्रत्युत वैपरीत्येन / प्रत्युत्तेत्युक्तवपरीत्य इति गणव्या. ख्यानम्। अधिकं तापमेव विधत्ते वितन्यते एतेनास्य ज्वरावस्थोक्ता। अत्र मृणाल्याः कविसम्मतसादृश्यावाहुवल्लीस्मारकत्वोक्तेः स्मरणालङ्कारः। तदुपजीवनेन तस्यास्तापशान्तिहेतोस्तद्विपरीततापकार्योत्पत्तिकथनाद्विरुद्धकार्योत्पत्तिलक्षणो विषमा. लङ्कारभेद इत्यनयोरङ्गाङ्गिभावेन सङ्करः // 82 // ___ उस वरुणके द्वारा धारण की गयी शीतल गुणवाली (फिर भी सन्ताप करनेसे) दुविनीत अर्थात् दुष्टस्वभाववाली मृणाली जिस कारण तुम्हारे बाहुलताके स्मरण-मालाको गूथती है अर्थात् तुम्हारे बाहुलताके स्मरणोंको दिलाती है, अतएव वह अधिक सन्तापको देती है। [ लोकमें भी लाभके लिए रखा गया दुर्जन लाभकी जगह हानि ही करता है / तापशान्तिके लिये धारण की हुई मृणाललता समान सादृश्य होनेसे तुम्हारी बाहुवल्लीका स्मरण कराकर वरुणके सन्तापको घटानेकी अपेक्षा बढ़ाती ही है ] // 82 // न्यस्तं ततस्तेन मृणालदण्डखण्डं बभासे हृदि तापभाजि / तच्चित्तमग्नर्मदनस्य बाणैः कृतं शच्छिद्रामव क्षणेन / / 83 // न्यस्तमिति / ततस्तदनन्तरमपि तेन वरुणेन तापभाजि हृदये न्यस्तं मृणालदण्डस्य बिसकाण्डस्य खण्डं शकलं तस्य वरुणस्य चित्ते मग्नमदनस्य वाणेः क्षणेन शतं छिद्राणि यस्य तत्तथा कृतमिव प्रतिकूलाचरणरोषाच्छतधाप्रणीतमिव बभासे। उत्प्रेक्षा॥८३॥ __ सन्तापयुक्त हृदयमें (छातीपर) उस ( वरुण ) के द्वारा रखा गया मृणालदण्डका टुकड़ा उस ( वरुण ) के चित्तमें धसे हुए काम-वाणोंसे मानों तत्काल किये गये सैकडों छिद्रोंसे युक्त किये गयेके समान शोभित होता है। [ स्वभावतः सच्छिद्र कमल नाल-खण्ड वरुणके मनमें निमग्न कामबाणोंसे छिद्रयुक्त किया गया-सा ज्ञात होता है / तुम्हारे विरहसे वरुण काम-बाणोंसे जर्जरित हो रहे हैं ] // 83 //