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________________ सतमः सर्गः 405 उस लक्ष्मी ( पक्षा०-शोमा ) को अवश्य ही ठग दिया, क्योंकि वह ( लक्ष्मी, पक्षा०शोभा) अत्यन्त लाल (रक्तवर्ण) इस दमयन्तीके चरणोंको प्राप्त कर शोभती है / [ दमयन्तीसे पराजित लक्ष्मी या शोमाने तो ब्रह्मासे दमयन्तीके पद अर्थात् दमयन्तीका संसारमें जो स्थान या शोभा है वही मेरा भी हो ऐसा बर मांगा था, किन्तु ब्रह्माने उसे अत्यन्त रक्तवर्ण दमयन्तीके चरणों को प्रदान किया। अथवा-अत्यन्त अरुण वह लक्ष्मी या शोभा इस दमयन्तीके चरणोको प्राप्तकर शोमती है, इस पक्षमें 'भृशारुणा' शब्दका सम्बन्ध पहलेके समान दमयन्तीके चरणोंसे न होकर लक्ष्मी या शोभासे है, अतः लक्ष्मी दमयन्तीके चरणों की सेवा करती हुई शोमित होती है या दमयन्तीके चरणों की शोभा अत्यन्त लाल है, यह अर्थ होता है। ब्रह्माने लक्ष्मीको भी दमयन्ती का स्थान नहीं दिया, किन्तु उसकी चरण सेवाका स्थान देकर ठग दिया, अतः प्रतीत होता है कि लक्ष्मी भी दमयन्तीके स्थानको पानेकी योग्यता नहीं रखती, केवल उसके पैरों के भजन ( सेवन ) करनेकी ही योग्यता रखती है, यही कारण है कि ब्रह्माने लक्ष्मीको, ‘पद' शब्दका अर्थान्तर कर उक्त प्रकारसे ठग दिया] // यानेन तन्व्या जितदान्तनाथो पदाजराजो परिशद्धपाणी। जाने न शुश्रूषयितुं स्वमिच्छू नतेन मूर्ना कतरस्य राज्ञः / / 101 // यानेनेति / यानेन गत्या दण्डयात्रया च जितो दन्तिनाथो गजश्रेष्ठो गजपतिश्च याभ्यां तौ परिशुद्धः निर्दोषो वशीकृतश्च पाणिः पश्चाद्भागः पाणिग्राहश्च ययोस्तो तन्व्याः पदाजे एव राजानौ पदाब्जराजौ कतरस्य राज्ञः पत्युः परिपन्थिनश्च नतेन मानशान्तये रौद्रशान्तये च नम्रेण मूर्ना स्वमात्मानं सेग्यं शुश्रषयितुं सेवयितुमिच्छू अभिलाषुको न जाने / अत्र पदाब्जराजाविति रूपकस्य श्लेषेणाङ्गाङ्गिभावेन सङ्करः // 101 // ___गमन (गज तुल्य गति, पक्षा०-विजय-यात्रा) से गजराजको विजय किये हुए तथा शुद्ध (निर्दोष, पक्षा०-वशमें किये गये) पाणि ( चरणका पृष्ठभाग, पक्षा०-पाणिग्राह नृप-विशेष ) वाले कृशाङ्गी (दमयन्ती) के दोनों चरणकमलरूपी राजा किस राजा (पतिभूत राजा, पक्षा०-पराजित राजा) के नम्र मस्तक से (प्रणयकलहमें दमयन्तीको मान त्याग करते समय नम्र मस्तकसे. पक्षा०-अनुचिताचरण के कारण कुपित विजयी राजा को प्रसन्न करने के लिये नम्र मस्तक से ) अपनी सेवा कराने के लिये इच्छुक हैं अर्थात सेवा कराना चाहते हैं, यह मैं नहीं जानता हूँ। [जिस प्रकार हाथीवाले राजाओं को विजयी एवं दोषहीन पाणिगत राजा वाला कोई राजा किसीपर कुपित होकर पैरोंपर नम्र मस्तक होकर प्रणाम करनेसे उसके द्वारा सेवा कराता है, उसी प्रकार अपनी गजपतिसे गजराजोंके विजयी एवं दोषरहित पृष्ठभागवाले दमयन्तीके चरणकमलरूप राजा विवाह होनेपर प्रणयकलहमें प्रिया दमयन्तीको मानत्याग करने के लिये पैरोंपर नतमस्तक पतिभूत किस राजाके द्वारा सेवा कराना चाहता है, यह ज्ञात नहीं है / दमयन्ती गजगामिनी है ] // 101 //
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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