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________________ 390 नैषधमहाकाव्यम् / बाले इस ( दमयन्तीके ) नितम्बद्वयसे ( पाठा०-नितम्बरूप चक्रसे ) 'संसारको जीतना चाहता है क्या ? / [षिता भ्रीकृष्ण भगवान्ने यदि संसारको सर्वप्रत्यक्ष चक्र सुदर्शन चक्रसे जीत लिया तो मुझे अप्रत्यक्ष चक्रतुल्य गोलाकार दमयन्तीके नितम्बद्वयसे संसारको जीतना चाहिये / इस प्रकार कामदेव पितासे भी बढ़कर काम करना चाहता है ] // 88 // रोमावलीदण्डनितम्बचक्रे गुणञ्च लावण्यजल बाला / तारुण्यमूर्तेः कुचकुम्भकर्तुर्बिमति शङ्के सहकारिचक्रम् || 8 || रोमावलीति / बाला दमयन्ती तारुण्यमेव मूर्तिः स्वरूपं यस्य तस्य यौवनाख्यस्येत्यर्थः / कुचावेव कुम्भौ तयोः कर्तुः निर्मातुः कुम्भकारस्य रोमावल्येव दण्डः स च नितम्ब एव चक्र ते गुणः सौन्दर्यादिः तमेव गुणं सूत्रन्चेति श्लिष्टरूपकम् / लावण्यमेव जलञ्च सहकारिचक्रं सहकारिकारणकलापं बिभर्ति शके। रूपकोस्थापितेयमुरप्रेक्षेति सङ्करः // 89 // बाला दमयन्ती युवावस्थाके स्तनकलशको बनानेवाले (कुम्हार ) के लिये ( अपनी) रोमावलीको दण्ड, नितम्बको चक्र, अर्थात् कुम्हारका चाक, सौन्दर्य आदि गुणको सूत और लावण्यको पानी (इन घड़ा बनानेवाले के) सहकारी समूहको धारण करती है। [घड़ा बनानेके लिए दण्ड, चाक, सूत तथा पानीका होना आवश्यक है, अत एव दमयन्ती भी स्तनकलश बनानेवाले कुम्हारके लिये सब सामग्रियोंको उपस्थित करती है ] // 89 // अनेन केनापि विजेतुमस्या गवेष्यते किञ्चलपत्रपत्रम् / नोचेद्विशेषामितरच्छदेभ्यस्तस्यास्तु कम्पस्तु कुतो भयेन // 10 // अनेनेति / अस्याः सम्बन्धिना केनाप्यवाच्येनाङ्गेन मदनमन्दिरेणेत्यर्थः / चलपत्रपत्रमश्वत्थदलं 'बोधिगुमश्चकदल'' इत्यमरः / विजेतुं गवेष्यते अन्विष्यते किमित्युस्प्रेक्षा / 'मार्गत्यन्विष्यति गवेषयत्यन्विष्यति च' इति मनमः। नो चेन्नान्विष्यते चेत् तस्याश्वत्थपत्रस्य कुतः कस्मादन्यस्मात् भयेनेतरच्छदेभ्यः वृक्षान्तरपत्रेभ्यः, पक्षमीविभक्तेः / विशेषादतिशयात् कम्पस्तु अस्तु स्यात् / नान्यत्कम्पकारणं विद्म इत्यर्थः / बलिनान्विष्यमाणो दुर्बलो कम्पत इति च प्रसिद्धम् / अत्र सामुद्रिकाः। "अश्वत्थदलसङ्काशं गुह्यं गूढमपि स्थितम् / यस्याः सा सुभगा नारी धन्या पुण्यरवाप्यते" // 9 // ___ इस दमयन्तीका अवर्णनीय अर्थात् अतिसुन्दर (पक्षा०-अश्लील होनेसे नाम नहीं लेने योग्य ) कोई अङ्ग अर्थात् योनि पीपलके पत्तेको अच्छी तरह जीतनेके लिये ढूढ़ रहा है क्या ? नहीं तो किसके भयसे उस पीपलके पत्तमें दूसरे पत्तोसे अधिक कम्पन होता है। [ चूंकि पीपलका पत्ता अन्य पत्तोंकी अपेक्षा अधिक कांपता है, इससे अनुमान होता है कि दमयन्तीका सर्वसुन्दर अग्राह्मनामा अङ्ग उसको जीतनेके लिये खोज रहा है और इसीके भयसे वह कांप रहा है। अन्य भी कोई बलवान् पुरुष दुर्बलको जीतनेके लिये खोजता
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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