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________________ 328 नैषधमहाकाठबम् / मैमोविनोदाय मुदा सखोभिस्तदाकतीनां भुवि कल्पितानाम् / नातर्कि मध्ये स्फुटमप्युटीत तम्यानुबिम्ब मणि वेटिकायाम् / / 74 / / भैमीति / भैम्या विनोदायौत्सुक्यापनोदाय मुदा कौतुकेन, सखीभिभुवि भूतले, कल्पिताना तस्य नलस्याकृतीनां प्रतिकृतीनां मध्ये मणिवेदिकायां स्फुटमुदीतमपि तस्य नलस्य अनुबिम्ब नातर्कि न सर्कितम् / तत्रापि स्वकल्पिताकृतिसाम्यादिति भावः / अत एव सामान्यालङ्कारः तेन च भ्रान्तिमान् ग्यज्यत इस्यलकारेणालङ्कारध्वनिः॥ 74 // दमयन्तीके मन बहलावेके लिये भूमिपर बनाये गये नलके चित्रों के बीचमें, मणिमय फर्शपर सचमुच प्रतिबिम्बित नलकी छाया (परछाहीं) को भी सखियोंने नहीं लक्ष्य किया। [ सखियोंने दमयन्तीके मनको बहलानेके लिये नलके अनेक चित्र बनाये थे, नलके प्रतिविम्वित शरीरको भी बिलकुल समानाकार होनेसे उसे भी चित्र ही समझा। दमयन्तीके मनोविनोदके लिये सखियोंने बहुतसे नलके चित्र मणिमय वेदियों ( फर्टी) पर बनाये थे ] / / 74 // हुताशकीनाशजलेशदूतीनिराकरिष्णोः कृतकाकुयाच्याः / मैन्या वचोभिः स निजां तदाशां न्यवर्तयदूरमपि प्रयाताम् / / 7 / / हुताशेति / कृताः काका यात्राः प्रार्थना याभिस्ताः चित्तचालनचतुरोक्तीरि. त्यर्थः / हुताशकीनाशजलेशाः वद्वियमवरुणाः / प्रेतपतिः पितृपति कीनाश' इति हलायुधः / तेषां दूतीः निराकरिष्णोः परिहमस्याः। “अलं कृष" इत्यादिना इष्णु प्रत्ययः / “न लोक" इत्यादिना षष्ठीप्रतिषेधाद् द्वितीया / भैम्याः वचोभिः स नलो दूरं प्रयाताम् इन्द्रादिकपटेन लुप्तप्रायामपि निजां स्वकीयां तदाशां भैमीतृष्णा भ्यवर्तयत् निवर्तितवान् / पुनस्तत्प्रत्याशामकार्षीदित्यर्थः // 75 // दीनतापूर्वक याचना करनेवाली अग्नि, यम तथा वरुणकी दृतियोंको मना करनेवाली दमयन्तीकी बातोंसे बहुत दूर तक गयी हुई भी दमयन्ती विषयक अपनी आशाको नलने पुनः लौटाया [ इन्द्रादिका दूत-कर्म करने तथा दमयन्तीको इन्द्रादि द्वारा चाहनेके कारण नलको दमयन्तीके पानेकी आशा नहीं रह गयी थी, किन्तु अग्नि आदिकी दूतियोंको जब दमयन्तीने स्पष्ट मना कर दिया यह देख नलको फिरसे दमयन्तीकी प्राप्तिकी भाशा हो गयी / दूर तक भी गया हुआ भी कोई व्यक्ति जैसे वचनों ( बुलाने ) में वापस लौट भाता है, वैसे ही दूर तक गयी ( छूटी ) दुई नलकी आशा भी फिर लौट आयो ] // 75 / / विज्ञप्तिमन्तः समयः स मैन्यां मध्येसभं वासवशम्भलीयाम् / सम्माषयामास भृशं कृशाशस्तदालिवृन्दरभिनन्धमानाम // 76 / / विज्ञप्तिमिति // स नलो मध्येसभं सभाया मध्ये "पारे मध्ये षष्ठया वा" इत्यम्पनीमावे नपुंसकहस्वस्वम् / तदालिवृन्दैः भैमीसखीसबैरभिनन्धमानां, वासवश
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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