________________ 126 नैषधमहाकाव्यम। मन्दाकिन्या इति रूपकम् / यानं वाहनं, 'मकरीवाहना गङ्गा' इति प्रसिद्धिः। मन्ये भनोस्प्रेक्षा / तस्याश्चोक्तरूपकेण सङ्करः // 69 // जिस दमयन्ती-समामें सुन्दर कटिवाली सखीने ( दूसरी) सखीके स्तनोंपर पत्ररच. नाके बीचमें हाथसे मकरीको चित्रितकर उससे कहा कि "हे सखी ! यह मकरी तुम्हारी एकावली ( एक लड़की मुक्तामाला ) रूप गङ्गाका मानों वाहन है / " [ एकावलीको स्वच्छतम होनेसे गङ्गा तथा तत्समीपवती स्तनस्थ मकरीको गङ्गाका वाहन होने की उत्प्रेक्षा चित्रकारिणी सखीने अपनी सखीसे परिहासमें की है ] // 69 / तामेव सा यत्र जगाद भूयः पयोधियादः कुचकुम्भयोस्ते / सेयं स्थिता तावकहच्छयाकुप्रियास्तु विस्तारयशःप्रशस्तिः / / 70 // तामिति // यत्र सा पूर्वोक्ता प्रसाधिका तामेव सखीं भूयो जगाद / किमिति / पयोधेर्यादो जलग्राहः समद्रसम्भव इत्यर्थः / किञ्च, तावकस्य हृच्छयस्य मकरध्व. जस्याङ्को मकरस्तस्य प्रिया दयित।। ते तव, कुचकुम्भयोः स्थिता, सेयं मकरी विस्तारयशसस्तयोरेव परीणाहकीतः प्रशस्तिः स्तुतिवर्णावलिरस्तु // 70 // जिस दमयन्ती-सभामें ( स्तनोंपर मकरी-रचना करनेवाली ) वह सखी उस सखीसे बोली कि-"तुम्हारे दोनों स.न-कलशोंपर समुद्री जन्तु तुम्हारे हृदयमें स्थित कामदेवके चिह्नभूत ( मकर की प्रिया) इन स्तनोंके विस्तारका कोर्तिलेख होवे / [ तुम्हारे स्तन इतने विशाल तथा अगाध हैं कि समुद्रको छोड़कर यह जल जन्तु यहां निवास कर तुम्हारे स्तनों के बड़े होनेकी कीर्तिको लिखितरूपमें स्थिर कर रहा है। तथा हृदय स्थित कामदेव चिह्न मकरके समीप ही उसकी प्रिया मकरीका भी रहना उचित ही है / अन्य भी कोई स्त्री अपने प्रियके पास ही सर्वदा रहना पसन्द करती है / 'प्रकाश'कारने कामदेव चिह्न 'मकर के स्थानपर 'मीन' अर्थ किया है ] // 70 // शारी चरन्तीं सखि मारयनामित्यक्षदाये कथिते कयापि / यत्र स्वघातभ्रमभीरुशारीकाकूत्थसाकूतहसः स जझे / / 71 // शारीमिति / यत्र स नलः, कयापि / कितवया इति शेषः / हे सखि, एनां चरन्ती भ्रमन्ती, शारीमतोपकरणं दारुविकारं, शारिकाख्यां शकुन्तिकामित्यान्तरेण शकुन्तिकाया भयोत्पत्तिः / 'शारी त्वक्षोपकरणे तथा शकुनिकान्तर' इति विश्वः / मारय प्रहर / इति अक्षदाये अक्षाः पाशकाः / 'अक्षास्तु देवकाः पाशकाच ते' इत्यमरः / तेषां सम्बन्धी दायो दानम् / 'दागो दाये यौतकादिधने वित्ते च पैतृक इति वैजयन्ती / तस्मिन् कथिते स्वघाते आत्ममारणे, भ्रमेण भ्रान्त्या, मीरोभीतायाः शार्याः शारिकायाः, काका विकृतस्वरेण उत्थः उत्थितः, साकृतः भावगर्भो हसो हासो यस्य सः, “स्वनहसोर्वा” इति विकल्पादप्प्रत्ययः / जज्ञे ज्ञातः // 71 // जिस दमयन्ती-सभामें 'हे सखी ! ( एक धरसे दूसरे घरमें ) चलती हुई इस सारी