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________________ पञ्चमः सर्गः 316 कुण्डिनेन्द्रसुतया किल पूर्व मां वरीतुमुररीकृतमास्ते / ब्रीडमेष्यति परं मयि दृष्टे स्वीकरिष्यति न सा खलु युष्मान् // 114 // कुण्डिनेति / कुण्डिनेन्द्र तथा दमयन्त्या। 'न लोक-' इत्यादिना निष्ठायोगे षष्ठीप्रतिषेधात् कर्तरि तृतीया। पूर्वमेव मां वरीतुमुररीकृतमजीकृतमास्ते / तया मदरणमङ्गीकृतं किलेरपर्थः / किति वार्तायाम् / कर्मणि का। भङ्गीकारस्य कथञ्चिदिच्छार्थस्वमङ्गीकृत्य, 'समानफर्तृकेषु तुमुन्' इति तुमुन्प्रत्ययः / ततो मयि दृष्टे परं ब्रीडमेष्यति / एवं च सा युष्मान स्वीकरिष्यति खलु // 14 // 'कुण्डिनपुराधीशको कन्या दमयन्तीने पहलेसे हो मुझे परण कर किया है। ऐसा निश्चित है / ( अतः सहसा ) मुझे देखनेपर वह ( सात्त्विक मावोंके उदय होनेसे ) लज्जित हो जायेगी और निश्चय है कि आपलोगों को वरण नहीं करेगी। [अब दमयन्सीने पहलेसे हो मुझे वरण कर लिया है, तब मेरा साक्षात्कार होने पर भापकोगों को वरण करना तो दूर, रहा, आपलोगों के वरण करनेके प्रस्तावको भी नहीं सुनना चाहेगी, मतः उसके लिए आपलोगों को इच्छा करना व्यर्थ ही है ] // 114 // तत्प्रसीदत विधत्त न खेदं दूत्यमत्यसदृशं हि ममेदम् | हास्यतैव सुलभा न तु साध्यं तद्विधित्सुभिरनौपयिकेन / 115 / / तदिति / तत्तस्मात् , प्रसीदत प्रसन्नाः स्थ, खेदं क्लेशं, न विधत्त न कुरुत / ममेदं दूस्यमत्यसदृशमस्यन्तायोग्एं, हि / कुतः ? भनौपयिकेन अनुपापेन, उपायं घिनेत्यर्थः / 'उपायाद्धस्वस्वञ्च' इति स्वार्थे ठक हस्वस्वं च / तद् दूत्यं विधिरसुभि. श्चिकीर्षुभिहस्यतैव मुलमा, साध्यं प्रयोजनन्तु न सुलभम् / भनुचितकर्मारम्भोऽनर्थाय भवेन्न फलायेत्यधः // 115 // इस कारण भापलोग ( मेरे ऊपर ) प्रसन्न होये, ('इस नल ने हमारा दूत-कर्म नहीं किया' इस कारण अपने मनमें ) खेद न करें। क्योंकि यह (दूत-कर्म ) मेरे लिए अत्यन्त अनुचित है / अनुथित उस (दूत-फर्मरूपी कार्य) को करनेकी इच्छा करनेवाळे आप लोगोंका (जन समाजमें) उपहास ही सुलभ होगा (दमयन्तीकी प्राप्तिरूप ), कार्य सुलभ नहीं होगा // 115 // ईशानि गदितानि तदानीमाकलय्य स नलस्य बलारिः / शंसति स्म किमपि स्मयमानः स्वानुगाननविलोकनलोलः // 116 / / ईदृशानीति / स बलारि इन्द्रः, तहानी नलस्येशानि गदितानि वाक्यानि, आकलग्य आकय / स्मयमानो मन्दं हसन् / स्वानुगानां यमादीनाम, आनन·
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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