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________________ पञ्चमः सर्गः अच्छी तरह विजय करो। [ यद्यपि मुनि होने के कारण किसीका गुण या दोष देखकर मुझे विचलित या माश्चयिंत नहीं होना चाहिये, तथापि तुम्हारे स्वाभाविक अर्थात् निष्कपट एवं शाश्वत मधुर प्रभावसे हम चाल या पाश्चयित हो रहे हैं। अतः महाहर्षाधिक्यसे 'भा:" शब्दका प्रयोग हुआ है ] // 24 // सङ्घयविक्षततनुम्रवदस्रक्षालिताखिलनिजाघलघूनाम् / यत्त्विहानुपगमः शृणु राज्ञां तज्जगद्युवमुदं तमुदन्तम् // 25 // एवमिन्द्रमभिनन्ध तस्प्रश्नस्योत्तरमाह-सङ्खयेति / सङ्खये समरे, विक्षता. भ्यः प्रहृताभ्यः तनुभ्यो गात्रेभ्यः, सद्भिररसग्भिः पालितानि निर्णिकानि अखि• लानि निजान्यघानि येषां तेषामत एव रघूनां निर्भाराणां राज्ञां यद्यस्मात् कारणा दिह स्वर्गेऽनुपगमो नागमः तरकारणभूतं अगस्सु ये युवानः तेषां मुदमानन्दकार. णम् असाधारणार्थम, अभेदेनः व्यपदेशः। तं प्रसिद्धम् उदन्तं वार्ताम् / 'वार्ता प्रवृत्तिवृत्तान्त उदन्तः' इत्यमरः। शृणु। अत्र चालिताघपदार्थस्य विशेषणगत्या लघुत्वहेतुत्वात् पदार्थहेतुकं कायलिजमलङ्कारः // 25 // युद्ध में घायल शरीरसे बहते हुए रक्त द्वारा धो दिये गये हैं सब पाप जिनके, ऐसे होनेसे हलके ( अथवा-."धोये गये सब पापोंके कारण हलके। 'हलका' होनेसे अत्यन्त ऊँचे भानेमें समर्थ ) रानालोगोंका यहा ( स्वर्गमें) प्रागमन नहीं होता है, संसारके अत्यन्त हर्षप्रद उस वृत्तान्तको सुनो। [हरूको वस्तु सरलतासे अत्यधिक ऊँचे स्थानको जा सकती है, युद्ध में घायल होने या मरनेसे वीरोंकी पुण्यातिशयलाम होता है तथा उनके पाप नष्ट हो आते हैं, पापका भार अत्यन्त मारी (ढोने में अशक्य) तथा पुण्यका मार अत्यन्त हलका (सर्वत्र ले जाने योग्य) होता है, हलके मार ( बोझे ) वाला व्यक्ति सरलतासे पर्वतादि ऊँचे स्थानों में चढ़ सकता है / सब पाप नष्ट होनेसे पुण्यात्मा वीर राजाओंका भी स्वर्गमें पहुँ। चना अनायास साध्य हैं ] // 25 // सा भुवः किमपि रत्नमनघं भूषणं जयति तत्र कुमारी / भीमभूपतनया दमयन्ती नाम या मदनशस्त्रममोघम् / / 26 / / सेति / भुवो भूषणं किमप्यनर्घममूल्यं रत्नम् / असाधारणं स्त्रीरत्नमित्यर्थः / कुमारी कन्या, अनूढेय / सा दमयन्ती नाम भीमभूपतनया तन्न भुवि जपति / सर्वोत्कर्षेण जागति, या अमोघं मदन शाम् // 26 // __ वहाँ ( भूतलपर ) पृथ्वीका भूषण मूल्व कोई (मनिवर्चनीय अर्थात जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता, अथवा-जिस रत्नका नाम नहीं बतलाया जा सकता) रत्न राजा भीम की कन्या दमयन्ती नामकी कुमारी सर्वश्रेष्ठ है, जो कामदेवका ममोघ (कमी
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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